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२. प्रसाद - सरल - सुबोध तथा स्वाभाविक शब्द - प्रयोग |
३. समता - वर्णयोजना में एकरूपता, भले ही वर्णयोजना कोमल हो या कठोर ।
४. माधुर्य - वर्णयोजना में मिठास का गुण एवं अर्थव्यंजना में अश्लीलता के अभाव से उत्पन्न सरसता । ५. सुकुमारता - कोमल एवं सुकुमार वर्णों को योजना |
६. अर्थव्यक्ति-भाव या अर्थ की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति, जिससे कोई बात अप्रकट या अर्धप्रकट न रह सके ।
७. उदारत्व - किसी उदात्तगुण या भाव का वर्णन ।
८. प्रोज- समासों का प्रचुर प्रयोग |
8. कान्ति - लोकव्यवहार के अनुरूप, स्वाभाविक तथा अत्युक्तिरहित वर्णन |
१०. समाधि - रूपक योजना अथवा रूपकात्मक अभिव्यक्ति ।
वैदर्भी तथा गौड़ीय मार्गों के निर्धारक तत्त्वों के रूप दण्डी ने स्पष्ट किया है कि माधुर्य, अर्थव्यक्ति, उदारत्व, समाधि और प्रोज- ये पाँच गुण, दोनों मार्गों में समान
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