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वस्तुतः यह मत संदिग्ध सा प्रतीत होता है, इसके प्रमाण भी प्रक्षिप्त तथा सन्देहास्पद हैं ।१
काव्य के प्रकार
काव्य की अजस्रधारा को विभाजित करने का कार्य अत्यन्त कठिन है परन्तु पूर्वाचार्यों ने अथक प्रयत्न से काव्य के प्रकार स्पष्टतया लाक्षणिकग्रन्थों में प्रतिपादित किये हैं।
___ काव्य के भेद-प्रभेदों के विषय में प्राचीनकाल से ही विमर्श होता रहा है। प्रत्येक सम्प्रदाय के काव्यतत्त्व विवेचक आचार्य ने अपनी तरह से भेद-प्रभेदों का वर्णन प्रस्तुत किया है। प्राचार्य भामह ने काव्य के दो भेद किये थेगद्यकाव्य, पद्यकाव्य । उन्हें वृत्तबन्ध तथा प्रवृत्तबन्ध की दृष्टि से ये दो भेद ही अभीष्ट थे। रीतिसम्प्रदाय के प्राचार्य वामन ने काव्य की उक्त स्वरूपद्वयी को स्वीकार किया था ।२ इन्होंने प्रबन्धकाव्यों में दशरूपक को श्रेष्ठ माना है ।३
१. वही. पृ. ३३१ २. काव्यं गद्यं पद्यञ्च -काव्यालङ्कारसूत्र-१-३-२७ ३. संदर्भेष दशरूपं श्रेयः -वही-१-३-३०
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