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काव्यं यशसेऽर्थकृते, व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये । सद्यः परनिर्वृत्तये, कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे ।
काव्यप्रकाशकार मम्मट पर आचार्य रुद्रट की छाप स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है। परन्तु मम्मट की समन्वयवादिता प्रशंसनीय है।
कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्य हेमचन्द्र ने काव्य के तीन प्रयोजन स्पष्ट किये हैं
काव्यमानन्दाय यशसे, कान्तातुल्यतयोपदेशाय च ।
प्राचार्यश्री इन तीनों में आनन्द को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए कहते हैं कि आनन्द कवि एवं सहृदयगत है, यश की आकांक्षा केवल कविगत है और सहृदय पाठक उपदेश ग्रहण करता हैं अतः ये तीनों तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं किन्तु आनन्द काव्य का विशिष्ट प्रयोजन है ।
आचार्य विश्वनाथ की काव्यप्रयोजन विवेचना पर कुन्तक की छाप स्पष्टतया दिखाई देती है। क्योंकि उन्होंने कहा है
चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखादल्पधियामपि । काव्यादेव यतस्तेन तत्स्वरूपं निरूप्यते ।।
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