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काव्यशास्त्र : एक अनुशीलन
गीर्वाण गिरा की गरिमा लोकविश्रुत है । सफल साहित्य की रचना के सम्बन्ध में किञ्चिन्मात्र भी वक्तव्य प्रस्तुत करना सहज कार्य नहीं है । सफल समालोचक एवं यशस्वी कविराज आचार्य मङ्खक ने कहा है-'किसी कवि के काव्यमर्म को जानने की योग्यता आलोचक में होती है। कविताकामिनीविलासी सफल साहित्यकार ही कवि-कर्ममर्म की कमनीयता को जान सकता है।'
काव्य की परिभाषा
संस्कृत साहित्य के लाक्षणिक ग्रन्थों में काव्य की परिभाषा के सन्दर्भ में पर्याप्त मतभेद हैं। इस विभिन्नता का एक मात्र कारण यह है कि सभी प्राचार्यों ने काव्य की आत्मा के गवेषण में भेद किया है। फलस्वरूप काव्य के लक्षण में भी विभिन्नता दिखाई पड़ती है । अनुसन्धान एवं प्रतिपादन की विभिन्नता होने पर भी कोई क्षति नहीं हुई है अपितु कोटिपूरकता होने के कारण संस्कृत-काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों को अनुपम सम्बल प्राप्त हुआ है ।
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