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गौतमचरित्र। अनुसार किया हुआ व्रत निष्फल कभी नहीं होता। इन तीनों दिनोंतक जिनमंदिरमें ही शयन करना चाहिये ॥ १५॥ श्रीवर्द्धमानस्वामीका प्रतिबिंब स्थापन कर इक्षुरस, दूध, दही, घी और जलसे भरे हुए कुंभोंसे अभिषेक करना चाहिये ॥१६॥ तदनंतर पापोंको नाश करनेके लिये मन वचन कायको स्थिर कर जल, चंदन आदि आठों द्रव्योंसे भगवान् बर्द्धमानस्वामीकी पूजा करनी चाहिये ॥१७॥ फिर कुबुद्धिको नाश करने के लिये श्रीसर्वज्ञदेवके मुखारबिंदसे उत्पन्न हुई श्रीसरस्वतीदेवीकी पूजा भक्तिपूर्वक करनी चाहिये ॥ १८ ॥ तदनंतर मुनिराजके चरणकमलों की सेवा करनी चाहिये क्योंकि गुरुयूजा पापरूपी वृक्षों को नाश करने के लिये कुठार के समान है और संसाररूपी समुद्रमें पड़े हुए जीवों को पार कर देने के लिये लायके समान है ॥१२॥ उन दिनों मनको निश्चलकर भक्तिपूर्वक तीनों समय सामायिक करना चाहिये क्योंकि सामायिक ही आते हुए कर्मोको रोकनेमें समर्थ है यत्तन्निष्फल न हि जायते । यावदिनत्रयं शय्या कर्तव्या निनमंदिरे ॥१५॥ श्रीवीरनाथबिंबस्य स्नपनं क्रियते मुदा । इक्षुसुनसदुग्धदधिवारिभृतैवट: ॥१६॥ ततः पूना प्रकर्तव्या वीरस्य सलिलादिभिः । हृवाकार्य स्थिरीकृत्य दुष्कृतनाशहेतवे ॥१७॥ ततो जैनागमस्याएं क्रियते भक्तिपूर्वकम् । सर्वज्ञवक नातस्य कुमतिनाशहेत वे ॥ १८ ॥ गुरुक्रमांत्रुत सेव्यं पापद्रुमकुठारकम् । भववाढिपततु पमुतारणनौप्तमम् ॥१९॥ सामायिक प्रतिव्यं त्रिसंध्यायां सुनक्त । हृदयं निश्चलीकृत्य कर्मरोवनतस्परम् ॥२०॥ अपरानिमत्रेग प्रनयाष्टो