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________________ तीसरा अधिकार । [er चैत इन दोनों महीनोंके शुक्लपक्षके अंतके दिनोंमें करना चाहिये ।। ११ ।। उस दिन सब शरीरको शुद्धकर धुले हुए धोती दुपट्टा पहनने चाहिये और मुनिराजके समीप जाकर तीन दिनके लिये शीलव्रत (ब्रह्मचर्य) धारण करना चाहिये ॥ १२ ॥ मन, वचन, कायकी शुद्धतापूर्वक प्रोषधपूर्वक तेली करना चाहिये क्योंकि यह प्रोषधपूर्वक उपवास ही मोक्षफल देनेवाला है और इसीसे समस्त कर्म नष्ट होते हैं ॥ १३ ॥ अथवा यदि शक्ति न हो तो फिर एकांतरसे इस व्रतको करना चाहिये ( १२ का एकाशन १३ को उपवास, १४ को एकाशन १५ को उपवास, पडवाको एकाशन ) क्योंकि जैन विद्वानोंने व्रत ही शीघ्र स्वर्गफल देनेवाला बतलाया है ॥ १४ ॥ यदि इतनी भी शक्ति न हो तो फिर अपनी शक्तिके अनुसार जितना किया जाय उतना ही करना चाहिये क्योंकि शक्तिके निर्वाचं पुत्र्यः शृणुत तद्विधिम् । तस्याकर्णनमात्रेण सत्सुखं जायते नृणाम् ॥ १० ॥ मासे भाद्रपदे चैत्रस्वेतपक्षे पुरा दिने । इदं व्रतं प्रकर्तव्यं भव्यैर्मुक्तियियासुभिः ॥ ११ ॥ विश्वांगं निर्मलीकृत्य धार्य धौतांवरं द्वयम् । संगृहीत्वा मुनेरंते शीलवतदिनत्रयम् ॥ १२ ॥ कर्तव्योऽष्टोपवासो हि मनोवाक्काय शुद्धितः । विश्वकर्मक्षयप्राप्त्यै मुक्तिफलप्रदायकः ॥ १३ ॥ एकांतरेण वा कार्यं व्रतं शक्तिपरिच्युतैः । स्वर्गफलप्रदं शीघ्रं प्रोक्तं जैनविदांवरैः ॥ १४ ॥ स्वशक्त्या क्रियते १ - सुदी १२के दिन एकाशन, १३-१४-१५ को उपवास और पडवाको फिर एकाशन इसको अष्टोपवास वा आठवारका भोजन त्याग कर देना कहते हैं ।
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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