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________________ ५६ ] गौतमचरित्र । करती है | स्त्री ये सब काम एक साथ करती है । स्त्री जैसी भीतर से दिखाई देती है वैसी बाहरसे दिखाई नहीं देती और जैसी बाहर से दिखाई देती है वैसे कार्य नहीं करती । स्त्रियोंके चारित्रको भला कौन जान सकता है ।। १७५ - १७६ ।। कुटिल हृदयवाली स्त्रियोंकी जैसी चेष्टा होती है वैसी वे स्वयं नहीं होतीं । इस प्रकार शोकरूपी अग्निसे जिसका हृदय संतप्त होरहा है ऐसा वह राजा अपने हृदयमें बारबार चितवन करने लगा || १७७ ॥ वक्रोक्ति (जिस अभिप्रायसे कोई बात कही गई है उसका अर्थ बदलकर उत्तर देना), वक्र दृष्टि (तिरछी चितवन ), पहेलियोंको पढ़ानेवाली, बुरी संगति और सदा एकांत में बातचीत करते रहना ये सब बातें स्त्रियोंको नष्ट कर देती हैं || १७८ | उस रानीको मैंने कभी अप्रसन्न नहीं किया था, उसे पट्टरानी के पदपर विराजमान किया था और सब रणवासमें वह पूज्य मानी जाती थी । तो भी वह रानी क्यों रुष्ट होगई ।। १७९ || समस्त गुणोंको दत्तेऽन्यं वचनस्थानं रमतेऽन्येन वै समम् ॥ १७५ ॥ यादृशी दृश्यते मध्ये तादृशी न बहिर्वधूः । यद्वाह्येन करोत्येव वेत्ति स्त्रीचरितं हि कः ॥ १७६ ॥ कुटिलचेतसां स्त्रीणां चेष्टा या नास्ति सा नहि । पार्थिवोऽचिंतयश्चित्त शोकाग्नितप्तमानसः ॥ १७७॥ वक्रोक्ति वक्रदृष्टि पहेलीपाठिका तथा । कुसंगती रहोवार्ता स्त्रीरेताभिर्विनश्यति ॥१७८॥ कृतोऽस्या नाप्रसादोपि मया सा महिषीपदे । धृतावरोधसंपूज्या राज्ञी रुष्टा किमप्यसौ ॥ १७९ ॥ यस्याः सर्वगुणाधारो दशवर्षीय आत्मजः । प्रजानां पालने दक्षः सा सुंदरी कथं गता
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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