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________________ दूसरा अधिकार | [ ५५ वाली ! taid ! हे मेरे हृदयरूपी धनको चुरानेवाली ! गुणोंकी आधार ! हे विलासिनी ! तू कहां है, शीघ्र कह ॥ १७० ॥ हे चंद्रवदनी ! हे सुन्दरी ! हे रतिके भी मानको मर्दन करनेवाली ! हे पंचेन्द्रियों को सुख देनेवाली ! हे चित्तको मोहित करनेवाली ! तू कहां गई, शीघ्र बतला । १७१ ॥ हे सुन्दरी ! तेरी रक्षा करनेवाली दोनों दासियां कहां गई तथा मुझमें होनेवाला तेरा बहुतसा प्रेम इस समय कहां चला गया ? ॥ १७२ ॥ | यह सब मायामयी दृश्य मुझे मनोहर नहीं जान पड़ता । प्यारी ! इस महलमें कोई आ भी नहीं सकता फिर किस उपायसे तुझे हरण कर लिया ॥ १७३ ॥ अथवा हे कुलाचार से रहित दुष्ट ! तू अपने आप नष्ट होगई है ? नीच मनुष्योंकी संगति से सज्जन पुरुष भी नष्ट हो जाते हैं ॥१७४॥ स्त्री किसी अन्य पुरुषको बुलाती है, हृदयमें किसी अन्य पुरुषको धारण करती है, नियत किया हुआ स्थान किसी अन्यको बतलाती है और किसी अन्यके साथ क्रीड़ा गौर कांते मच्चित्तवित्ततस्करि । निर्दये ! हा ! गुणाधारे कुत्रासि हा विलासिनि ॥ १७० ॥ हा ! चंद्रवदने वामे हा ! रतिमानमर्दने । पंचाक्षसुखदे कुत्र गतासि चित्त मोहिनि ॥ १७१ ॥ सुंदरि रक्षपालास्ते क्व गतं चेटिकाद्वयम् । भूरिमद्विषये प्रीतिस्तव कुत्राधुना गता ॥ १७२ ॥ इदं मायामयं सर्वं दृश्यते न मनोहरी । कस्याप्यागमनं नात्र कस्मादुपायतो हृता ॥ १७३ ॥ दुष्टे ! किं वा स्वयं नष्टा कुलाचार विवर्जिते ! कुमानवप्रसंगेन नाश यांति हि सज्जनाः ॥ १७४ ॥ अन्यमाह्वयते नारी विधत्तेऽन्यं नरं हृदि ।
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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