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दूसरा अधिकार |
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( सफेद ) महल में पहुंचा ॥ १५८ ॥ राजाने परिवारके लोगोंको तो बाहर ही छोड़ दिया और कपूर, कस्तूरी, चंदन, पुष्प आदि अनेक पदार्थोंसे सुगंधित होनेवाले राजमहलके मध्य भागमें जा पहुंचा ॥ १५२ ॥ वह राजा रानीके उस सुन्दर पलंगको देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ और प्रेमसे उसका मन भर रहा था और मुँह तथा नेत्र प्रफुल्लित होरहे थे ॥ १६० ।। उस समय वह अपने मनमें विचार कर रहा था कि मैं इंद्र हूं, यह रानी शची है, यह राजभवन वैजयंत ( इन्द्रभवन ) है और यह सुन्दर पलङ्ग इन्द्रकी ही शय्या है ।। १६१ ।। तदनन्तर राजा मनमें फिर विचार करने लगा कि यह रानी आज मेरा आदर सत्कार क्यों नहीं करती है, मालूम नहीं आज इसका क्या कारण है ।। १६२ ॥ क्या इसके शरीरमें कोई रोग होगया है अथवा कोई मानसिक दुःख है अथवा मेरा अनिष्ट करनेवाले किसीसे रूठ गई है || १६३ || इस प्रकारकी चिंता से व्याकुल हुआ वह राजा उस रानीसे बाणपीडितः ॥ ११८ ॥ परिवारं बहिर्मुक्त्वा सौधमध्यं गतो नृपः । कर्पूरधन कस्तूरी चंदनपुष्पवासितम् ॥ ११९ ॥ स जहर्ष समालोक्य महिषीशयनं शुभम् । विकचदवसन्नेत्रः स्नेहपूरितमानसः ॥ १६० एवं विचारयामास सोऽहं शक्र इयं शची । वैजयंतमिदं वेश्म तच्छयनमिदं शुभम् ॥ १६९ ॥ राजेत्यचिंतयच्चित्तेऽभ्युत्थानं किमियं मम । संप्रति कुरुते नैव न जाने किमु कारणम् ॥ १६२ ॥ शरीरेऽस्याः किमु व्याधिः किमु का मानसी व्यथा । किं च केनापि संरुष्टा मदनिष्टप्रकारिणा ॥ १६३ ॥ इति चित्राकुलो भूपो बचो जगाद