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________________ ५२] गौतमचरित्र। कोंको वस्त्र, आभूषण और धन देकर अपने वशमें कर लिया ॥ १५३ ॥ फिर वह रानी अपने पूर्व पापकर्मके उदयसे उन दोनों दासियोंको साथ लेकर किसी देवीकी पूजाके बहानेसे आधी रातके समय उस राजमहलसे बाहर निकल गई ॥१५४॥ उन तीनों स्त्रियोंने सुन्दर वस्त्राभूषण आदि राज्यके चिह्नोंका साग कर दिया और गेरूके रंगे हुए वस्त्रोंसे अपने शरीरको ढककर जोगिनीका रूप धारण कर लिया ॥१५॥ वनमें जाकर उन तीनोंका राजभवनमें मिलनेवाला सुन्दर भोजन तो छूट गया और भूख मिटानेके लिये वे तीनों वनके वृक्षोंके फल खाने लगीं॥१५६॥ देखो, कहां तो राजाकी महा संपत्ति और कहां जोगिनीका रूप ? पापकर्मके उदयसे इस संसारमें जीवोंको किस किस अशुभकी प्राप्ति नहीं होती है ? भावार्थ-समस्त अशुभ कर्मोकी प्राप्ति होती है ॥१५७॥ इस घटनाके एक दिन बाद ही कामसे पीड़ित हुआ वह राजा रात्रिके समय मणियोंसे सजाये हुए रानीके शुभ्र सर्वे विश्वलोचनदासकाः । वस्त्राभरणरौप्येण विशालाक्ष्या वशीकृताः ॥१५३॥ निशीथसमये जाते देवीपूजामिषाद द्रुतम् । दासीढययुता राज्ञी निःसृता पूर्वपापतः ॥१५४॥ ता राज्यलक्षणं मुक्त्वा योगिनीरूपमादधुः । गैरिकारक्तसहस्त्रपिधानितशरीरकम् ॥ १५५ ॥ कानने ताश्च योगिन्यो हित्वा राजाईभोजनम् । बुभुजुर्बनवृक्षाणां फलानि क्षुद्विहानये ॥१५६॥ क्व भूमिपतिसंपत्तियोंगिनीरूपकं क च । पापोदयो न किं कुर्यादशुभं भुवि देहिनाम् ॥१५७॥ एकस्मिन्नंतरे भूपो रात्रौ जगाम तद्गृहम् । मणिविचित्रितं शुभ्रं मदन
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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