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________________ ४२] गौतमचरित्र। उस रानीने अपने चंचल और विशाल नेत्रोंसे हिरणोंके नेत्रोंकी शोभा भी जीत ली थी इसीलिये मानों हिरण भयभीत होकर बड़ी शीघ्रतासे बनमें जा बसे हैं ॥ ९८ ॥ उसके दोनों कान कोमल थे, मनोहर थे, सुंदर थे और सुंदर कर्णभूषणोंसे असन्त मुशोभित हो रहे थे ॥ ९९ ॥ उसकी दोनों भौंहें टेढ़ी थीं, चंचल थीं और ऐसी जान पड़ती थीं मानों कामीरूपी योद्धाओंको जीतनेके लिये बाणोंसे सजे हुए दोनों धनुष ही हों ॥१००॥ उस रानीका श्याम और सुगंधित पुष्पोंसे गठा हुआ केशपाश ऐसा अच्छा जान पड़ता था मानों उसके मुखकी सुगंधिके लोभसे सर्प ही आ गया हो ॥१०१॥ वह रानीहाव, भाव विलास आदि गुणोंसे भरपूर थी, लावण्य आदि गुणोंसे सुशोभित थी और समस्त गुणोंकी खानि थी। उसमें इतने गुण थे कि उनको कहने के लिये भी कोई समर्थ नहीं है ॥ १०२ ॥ वह रानी बड़ी ही सुंदरी थी और पतिके मनको वश करनेके लिये परम औषधिके समान येषां नेत्ररमां जहे दृशा चंचलया च या । अतो मृगाः भयत्रस्ताः शीघं इव बनं गताः ॥९८॥ शब्दग्रहौ दधातिस्म कोमलौ सुमनोहरौ। शुभाकारौ च या कांतौ कर्णाभरणभूषितौ ॥ ९९ ॥ भातःस्म सुभ्रुवौ यस्याः प्रकुंचिते सविभ्रमे । कामिसुभटसंजेतुं धनुषीव गुणांचिते ॥१००॥ रराज केशपाशोऽस्याः श्यामः सुपुष्पगुंठितः। तद्वगंधलोभेन भुजंगम इवागतः ॥ १०१ ॥ हावभावविलासाव्या लावण्यगुणसंयुता । सर्वगुणखनिर्याभूहक्तुं कस्तद्गुणान् क्षमः ॥ १०२॥ तया समं सुखं भुंजन् कालं निनाय भूपतिः । भर्तृमनोवशीकर्तुं पसै
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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