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________________ दूसरा अधिकार। [४१ फलके समान कठोर थे मनोहर थे और कामियोंके हृदयको जीतनेवाले थे ॥९२॥ उसके दोनों कुचोंके मध्यभागमें रहनेवाली कोमल रोमराजी ऐसी अच्छी जान पड़ती थी मानों कुचरूपी दोनों राजाओंका विरोध दूर करनेके लिये मध्यमें सी ही नियत कर दी हो॥९॥ उसके दोनों हाथोंकी हथेलियां लाल, कोमल, मनोहर, छोटी और सुन्दर थीं तथा उनपर मछली, ध्वजा आदि, अनेक सुन्दर चिह्न थे ॥१४॥ वह रानी अपने मुखरूपी चन्द्रमासे आकाशके चन्द्रमाकी शोभाको भी जीतती थी और इसीलिये तभीसे यह चंद्रमा उसके डरसेही मानों महादेवकी सेवा करने लग गया है ॥९॥ उस रानीने अपनी नाकसे तोतोंकी चोंचकी शोभा भी जीत ली थी इसीलिये मानों वे सब तोते लज्जासे व्याकुल होकर बनमें चले गये हैं ॥ ९६ ॥ उसने अपनी वाणीसे आमकी कलीकी मधुर गंधसे उत्पन्न होनेवाली कोयलकी वाणी भी जीत ली थी इसीलिये कोयल मानो उसी समयसे श्याम वर्णकी होगई है ॥९७॥ पीनावुन्नतौ सुमनोहरौ । कामिहृदयजेतारौ या धत्तेस्म पयोधरौ ॥१२॥ रोमरानिरभाद्यस्याः कोमला मध्यवर्तिनी । सीमेव स्तनभूपत्योर्विरोधशमनाय वै ॥ ९३ ॥ दधौ करतले या च मीनध्वनादिलक्ष्मके । रोहिते मृदुले सूक्ष्मे शुभाकारे मनोहरे ॥९४॥ स्वबदनेंदुना व्योमचंद्रशोभा जहार या । तदा प्रभृति भूतेशसेवां चक्रे सा तद्भिया॥१५॥ स्वघाणेन जिगायासौ तस्य घोणारमा शुभाम् । तदा बनं गता कीरा लज्जयेव सविह्वलाः ॥९६॥ वाचा जिगाय तद्वाणी या चाम्रकलिकोद्भवाम् । कांतया कोकिला जाताः श्यामवर्णाश्रितास्तदा ॥ ९७ ॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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