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________________ दूसरा अधिकार। [२६ प्रगट होता है । मद्य, मांस, मधुके त्याग करने, सचित्त पदायौँका साग करने, पांचों इंद्रिय तथा मनको वश करने और अपनी शक्तिके अनुसार दान देनेसे धर्म उत्पन्न होता है ॥ २५-२७ ॥ इसप्रकार और भी बहुतसे उपाय हैं जिनसे जैनधर्मकी वृद्धि होती है तथा उससे प्राणियोंको इस लोकमें और परलोक दोनों लोकोंमें उत्तम सुख प्राप्त होता है . ॥ २८ ॥ उत्तम धर्मके प्रभावसे मनुष्योंको शुद्ध रत्नत्रयकी प्राप्ति होती है और रत्नत्रयकी प्राप्ति होनेसे उन्हें शीघ्र ही मुक्तिरूपी सुंदरीकी प्राप्रि होजाती है ॥ २९ ॥ यह उत्तम धर्मरूपी कल्पवृक्ष हर्ष उत्पन्न करनेवाला है, इच्छानुसार फल देनेवाला है, सौभाग्यशाली बनानेवाला है, उत्तम पदार्थोकी प्राशिला है तथा यश और कांति देनेवाला है।॥३०॥ मनुष्योका पुण्यके प्रभावसे भरतक्षेत्रके छहों खंडोंकी भूमि, नवनिधि, चौदह रत्न, और अनेक राजाओंसे सुशोभित ऐसी चक्रवर्तीकी विभूति प्राप्त होती है ॥ ३१ ॥ पुण्यके प्रभावसे मनुष्य देवांगनाओंके समान सुंदर, पातिव्रत आदि ॥ २६ ॥ मद्यमांसमधुत्यागात्सचित्तवर्जनासथा। पंचाक्षचित्तरोधेन स्वशक्त्या दानतो वृषः ॥२७॥ इत्यादि बहुल द जैनो धर्मः प्रजायते। तेनेहामुत्र सत्सौख्यं प्राणिनामुपजायते ॥२८॥ सद्रत्नत्रयसंपत्तिनिमला जायते नृणाम् । सद्धर्मतस्तया शीघ्रं मुक्तिप्रिया समाप्यते ॥२९॥ हर्षदः कामदश्चापि सौभाग्यदः सुवस्त्रदः । यशोदः कांतिदश्चैब सहमकल्पपादपः ॥ ३० ॥ प्राप्यते पुण्यतो मत्यैश्चक्रवादिभूतयः । भरतभूमिसद्रत्ननिधिसुभटसंयुताः ॥३१॥ देवांगनासमाकाराः पति
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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