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________________ २८ ] गौतमचरित्र | -साथ, और अपनी सब सेनाके साथ मुनिराज के दर्शन करनेके लिये चला || २१ || वहां जाकर राजाने जल, चंदन आदि आठों द्रव्योंसे मुनिराजके चरणकमलोंकी पूजा की, उनकी स्तुति की, उन्हें नमस्कार किया और फिर उनसे धर्मवृद्धि रूप आशीर्वाद पाकर उनके समीप बैठ गया ||२२|| उस बनमें जो लोगोंका बहुतसा समुदाय इकट्ठा हुआ था उसे 'देखकर अत्यंत कुरूपा तीन शूद्रको कन्याएं शीघ्रता से आकर वहां बैठ गई ।। २३ ॥ तदनंतर उन मुनिराजने राजा और उस जनता के लिये, भगवान जिनेंद्र देवके मुखसे उत्पन्न हुआ और अत्यंत सुख देनेवाला धर्मोपदेश देना प्रारंभ किया ||२४|| वे कहने लगे कि " देव, शास्त्र, गुरुकी सेवा करनेसे धर्म उत्पन्न होता है । एकेंद्रिय, दो इंद्रिय आदि समस्त प्राणियोंकी रक्षा करनेसे धर्म उत्पन्न होता है, जीवोंका उपकार करनेसे धर्म उत्पन्न होता है, धर्मके मार्गोंको प्रकाशित करनेसे सर्वोत्तम धर्म प्रगट होता है, मन बचन कायकी शुद्धतापूर्वक सम्यग्दर्शन के पालन करने से और व्रतोंके धारण करनेसे धर्म समन्वितः ॥ २१ ॥ सलिलाद्यष्टधा द्रव्यैः कृत्वा पादार्चनं मुनेः । तद्धर्मवृद्धिमालब्ध्वा स्तुत्वा नत्वोपविष्टवान् ||२२|| बने जनवनं दृष्ट्वा कुरूपा शूद्रकन्यकाः । ततः तिस्रः समागत्य तरसा यत्र संस्थिताः ॥२३॥ स मुनींद्रोऽपि तं भूपं जगौ धर्मोपदेशकम् । जिनमुखात्समुद्भूतं भूरिसुखप्रदायकम् ॥ २४ ॥ देवशास्त्रगुरूणां हि सेवनाज्जायते वृषः । एकेंद्रियादिजीवानां रक्षणादुपकारतः ॥ २५ ॥ धर्ममार्गप्रकाशेन महत्तरो वृषो भवेत् । सम्यक्त्वादिव्रतानां वै त्रिशुद्धया ग्रहणात्तथा
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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