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________________ २२] गौतमचरित्र। दिन प्रोषधोपवास करना चाहिये । वह प्रोषधोपवास उत्तम मध्यम, जघन्यके भेदसे तीन प्रकारका माना जाता है ॥१०॥ चंदन केशर आदि पदार्थोका लगाना भोग कहलाता है तथा वस्त्र, आभूषण आदि पदार्थ उपभोग कहलाते हैं । इन दोनों प्रकारके पदार्थोकी संख्या नियत कर लेनी चाहिये । इसको भोगोपभोगपरिमाणवत कहते हैं। श्रावकोंको इसका भी पालन करना अत्यावश्यक है ॥ १०७ ॥ ज्ञानदान, औषधदान, अभयदान और आहारदानके भेदसे दान चार प्रकारका कहलाता है । यह चारों प्रकारका दान अपनी शक्तिके अनुसार गृहत्यागी मुनियोंके लिये देना चाहिये । इसको अतिथिसंविभागवत कहते हैं ॥१०८॥ बाह्य और आभ्यंतरके भेदसे दो प्रकारका शुद्ध तपश्चरण कहलाता है । यह दोनों प्रकारका तपश्चरण तत्त्वज्ञानियोंको अपने कर्म नष्ट करनेके लिये अवश्य धारण करना चाहिये ॥१०९॥ इसप्रकार महाराज श्रेणिक मुनिधर्म और श्रावकधर्म, दोनों प्रकारके धर्मोको सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुए सो ठीक ही है, भरे अमृतके घड़ेको पाकर कौन संतुष्ट नहीं होता? अर्थात् सभी संतुष्ट होते हैं ।।११०।। तत्त्रिधा मतम् ॥ १०६ ॥ घनचंदनलेपाद्या वस्त्रविभूषणादयः । क्रमात्संख्या विधातव्या भोगोपभोगयोस्तयोः ॥१०७॥ ज्ञानौषधाभयाहारभेदादानं चतुर्विधम् । स्वशक्त्यातिथये देयं प्रोक्तोऽतिथिविभागकः ॥१०८॥ द्विविधं सुतपः शुद्धं बाह्याभ्यंतरभेदतः। तत्तत्त्ववेदिभिह्य कर्मनाशनहेतवे॥१०९॥इत्यादिकं द्विधाधर्म श्रुत्वा मनसि भूपतिः । जहर्ष स सुधाकुम्भं प्राप्य को नहि तुष्यति ॥ ११० ॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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