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________________ पांचवां अधिकार। [१६६ किया और अनेक भव्य जीवोंको धर्मोपदेश देकर तथा अंतमें शेष कर्मोको नाश कर मोक्ष-लक्ष्मी प्राप्त की ॥ २५६ ॥ उन पांचसौ ब्राह्मणोंमेंसे आयु पूर्ण होनेपर कितने ही तो सर्वार्थसिद्धिमें उत्पन्न हुए और कितने ही अन्य स्वर्गों में उत्पन्न हुए सो ठीक ही है-तपश्चरणसे क्या क्या प्राप्त नहीं होता है ।। २५७॥ भगवान श्रीगौतमस्वामीके निर्मल गुणोंका वर्णन इंद्रका गुरु बृहस्पति भी नहीं कर सकता फिर भला मेरे ऐसा अल्पज्ञानी पुरुष उनके गुणोंका वर्णन कैसे कर सकता है अर्थात् कभी नहीं कर सकता ॥२५८॥ जिन भगवान गौतमस्वामीके धर्मोपदेशको सुनकर अनेक भव्य जीव मुक्त होगये और आगे भी सदा मुक्त होते रहेंगे ऐसे श्रीगौतमस्वामीके लिये मैं बारवार नमस्कार करता हूं ॥२५९॥ भगवान गौतमस्वामीकी स्तुति समस्त कर्मोको नाश करनेवाली है और अनंत सुख देनेवाली है। वह स्तुति मेरे लिये केवल मोक्ष प्राप्त करानेवाली हो-अर्थात् उस स्तुतिके प्रभावसे मुझे मोक्ष प्राप्त हो ॥ २६० ॥ श्रीगौतमस्वामीका जीव पहले विशालाक्षी नामकी क्षयं नीत्वा केवलज्ञानमाप्य च । संबोध्य भव्यसंदोहं प्रापतुस्तौ शिवश्रियम् ॥ २५६ ॥ आयुक्षयेऽथ ते मृत्वा केचित्सर्वार्थसिद्धिकम् । केचित्स्वर्गपदं प्राप्तास्तपसा किं न जायते ॥ २५७ ॥ यस्य शुभ्रान् गुणान् वक्तुं सुराचार्योऽपि न क्षमः । तस्य ज्ञानलवासक्तो मादृशः. क्षमते कथम् ॥२५८॥ यस्य सहचसा मुक्तिं गता भव्यजनाः घनाः। गमिष्यंति पुनर्नित्यं तस्मै नतिं करोम्यहम् ।।२५९॥ यत्स्तुतिर्मुक्ति
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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