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________________ १६८] गौतमचरित्र। बारह प्रकृतियोंका नाशकर मुक्तिरूपी स्त्री प्राप्त की॥२४८२५०॥ मोक्ष प्राप्त होनेपर वे सिद्ध अवस्थामें जा विराजमान हुए । उनका विशुद्ध आत्मा अंतिम शरीरसे कुछ कम आकारका है, आठों कर्मोसे रहित है, सम्यग्दर्शन आदि आठों गुणोंसे सुशोभित है, लोक शिखरपर विराजमान है, नित्य है, उत्पाद व्यय सहित है, चिदानंदमय है, ज्ञानस्वरूप है, और सनातन है ॥ २५१-२५२॥ मोक्ष जानेके साथ ही इंद्रादिक देव आये। उन्होंने मायामयी शरीर बनाकर कपूर, चंदन आदि ईंधनके द्वारा भस्म किया, मोक्षकल्याणक मनाया, वह भस्म अपने माथेपर लगाई व बारबार नमस्कार किया और फिर वे सब अपने स्वर्गको चले गये ॥ २५३-२५४ ॥ इधर श्रीगौतमस्वामीके अग्निभूति और वायुभूति दोनों भाई अपने साथके पांचसौ ब्राह्मणोंके साथ घोर तपश्चरण करने लगे ॥ २५५ ॥ उन दोनों भाइयोंने घातिया कर्मोको नाश कर केवलज्ञान प्राप्त प्रियां वक्रेऽनंतचतुष्टयैर्युतः ॥ २५० ॥ तत्र सिद्धो विभुर्भाति किंचिदूनोंऽत्यदेहतः । सम्यक्त्वादिगुणोपेतः कर्माष्टकविवर्जितः ॥ २५१ ॥ लोकाग्रसंस्थितो नित्यमुत्पादव्ययसंयुतः । चिदानंदैकरूपश्च ज्योतिर्मयः सनातनः॥२५२॥ अथेन्द्राद्याः सुरा एत्य कर्पूरचंदनेधनैः । मायामयं विनिर्माय जुहुवुस्तस्य विग्रहम् ॥२५३॥ मुक्तिकल्याणकं कृत्वा निधाय मूर्ध्नि भस्मकम् । पुनः पुनर्नमस्कृत्वा मुदा जग्मुः सुरालयम् ॥ २५४ ॥ अथ तौ भ्रातरौ यस्य वायुभूत्यग्निभूतिकौ । चक्रतुः सत्तपो घोरं पंचशतदिनैः सह ॥२५५॥ विश्वकर्म
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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