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________________ [१६१ पांचवां अधिकार । और ज्योतिषी देवोंके कृष्ण, नील, कापोत और जघन्य पीत लेश्या है । उनकी द्रव्यलेश्या भी यही है और भावलेश्या भी यही है ।। २१७॥ पहलेके दो स्वर्गों में मध्यम पीतलेश्या है, तीसरे चौथे स्वर्गमें उत्कृष्ट पीतलेश्या है और जघन्य पद्मलेश्या है। पांचवेंसे दशवें स्वर्गतक मध्यम पद्मलेश्या है । ग्यारहवें बारहवें स्वर्गमें उत्कृष्ट पद्मलेश्या है और जघन्य शुक्ललेश्या है । तेरहवें स्वर्गसे लेकर सोलहवें स्वर्गतक तथा नौ ग्रैवेयकोंमें मध्यम शुक्ललेश्या है । नव अनुदिशोंमें पांचों पंचोत्तरों में उत्कृष्ट शुक्ललेश्या है ॥ २१८-२२० ॥ असुरकुमार देवोंकी उत्कृष्ट आयु एक सागर है, नागकुमार देवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है, सुपर्णकुमारोंकी ढाई पल्य है, द्वीपकुमारोंको दो पल्य है और बाकीके भवनवासियोंकी उत्कृष्ट आयु डेढ़ डेढ़ पल्यकी है। इन्हीं देवोंकी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है ॥२२१-२२२॥ व्यंतर और ज्योतिषी जघन्यका । कृष्णादित्रितयाश्चापि वथिता द्रव्यभावतः ॥ २१७ ॥ आदिद्विस्वर्गदेवानां तेजोलेश्या च मध्यमा । सोत्कृष्टा तु परे युग्मे जघन्यपद्मलेश्यिका ॥ २१८ ॥ परे युग्मत्रये प्रोक्ता पद्मलेश्या च मध्यमा । सोत्कृष्टा चापरे इंटे शुक्ल लेश्या जघन्यका ॥ २१९ ॥ ततो युग्मद्वये स्वर्गे नवग्रैवेयकेषु च । मध्यमा शुक्ललेश्या तु चतुदशसु. सा परा ॥२२०॥ असुराणां स्थितिः प्रोक्ता साधिकः सागरः परा । त्रिप ल्यका तु नागानां साईद्वयं सुपर्णके ॥२२१॥ द्वीपानां युगलं पल्यं शेषाणां पल्यमा भाक् । दशवर्षसहस्राणि जघन्या कथिता स्थितिः ॥२२२॥ भौमानां ज्योतिषां पल्यं साधिकं तु परा स्थितिः।
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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