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________________ पांचवां अधिकार। [ १८३ होंगे और प्रजाको दुःख देनेवाले होंगे ॥ १७४ । उस समयके मनुष्य अपने पहले जन्ममें उपार्जन किये हुए पापकर्मोके उदयसे पापकार्यों में तल्लीन होंगे, अनेक प्रकारके दुःखोंसे भरपूर होंगे, उनका हृदय सम्यग्दर्शनसे शून्य होगा, दूसरोंके ठगनेमें वे तत्पर रहेंगे, एकेंद्रिय आदि जीवोंकी हिंसा करनेमें वे तल्लीन रहेंगे, झूठ बोलेंगे, दूसरोंका धन हरण करलेनेमें बड़े चतुर होंगे, ब्रह्मचर्यव्रतसे सर्वथा रहित होंगे, बहुतसे परिग्रहको धारण करनेवाले होंगे, मूर्ख होंगे, कुछ लोग ही अणुव्रती होंगे, सब लोग अज्ञान और व्याधियोंसे भरपूर होंगे, उनके हृदय मिथ्यात्वसे ही भरपूर रहेंगे, वे बड़े भारी शोकसे सदा संतप्त बने रहेंगे, धर्मरूपी बेलको उखाड़ फेंकनेके लिये मदोन्मत्त हाथीके समान होंगे, कठोर बचन कहनेमें सदा तत्पर रहेंगे, गुरुके लिये वे कभी विनय नहीं करेंगे, बड़े क्रोधी होंगे, सदा धनके लोभमें चूर रहेंगे। मायाचारी, महा अभिमानी, परस्त्रियोंके लोलुपी, परोपकारसे सर्वथा रहित, जैनधर्मके विरोधी, दूसरोंको दुःख दुःखप्रदायिनः ॥ १७४ ॥ पापकर्मसमासक्ता नानाक्लेशप्रपूरिताः । सम्यक्त्वोज्झितचेतस्काः परबंचनतत्पराः ॥१७॥ एकेंद्रियादिजीवानां हिंसारक्ता मृषोदिताः। परस्वहरणे प्राज्ञा ब्रह्मव्रतपरिच्युत्ताः॥१७६॥ भूरिपरिग्रहाः मूढा लेशव्रतसमन्विताः। अज्ञानव्याधिसम्पूर्णा मिथ्यानिर्भरमानसाः ॥ १७७ ॥ भूरिशोकेनसंतप्ता धर्मवल्लीमहागनाः।" निष्ठुरबचनासक्ताः गुरुसु विनयोज्झिताः ॥ १७८॥ महाक्रोधधरा नित्यं धनलोभपरायणाः । मायाविनो महागर्वाः परसीमंतिनीरताः
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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