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________________ १८२] गौतमचरित्र। कहलाते हैं तथा इन्हीमें चौवीस कामदेव, नौ नारद, चौवीस तीर्थंकरोंके पिता, चौवीस तीर्थंकरोंकी माताएं, चौदह कुलकर, ग्यारह रुद्र, ये एकसौ उनहत्तर पुरुष महापुरुष कहलाते हैं ॥१६९॥ इनमेंसे धर्मके प्रभावसे कितने ही तो मोक्षमें पहुंच चुके हैं और कितने ही शीघ्र पहुंचेंगे । हे राजन् ! यह बात सर्वथा सत्य है ॥१७०॥ हे राजा श्रेणिक ! इसप्रकार दुःषममुषमकालका स्वरूप कहा । अब पांचवें दुःषमकालका स्वरूप कहता हूं, तू सुन ॥१७॥ जिसससय श्रीवर्द्धमानस्वामी मोक्ष पधारेंगे और सुरेंद्र, नागेंद्र, नरेंद्र सब उनका कल्याणोत्सव मना. वेंगे उससमय धर्मतीर्थकी प्रवृत्ति होती रहेगी ॥१७२॥ इसके कुछ दिन बाद जब केवली भगवानका धर्मोपदेश बंदहोजायगा और देवोंका आना भी बंद हो जायगा उस समय मनुष्य बड़े दुष्ट होंगे और बड़े बड़े अनर्थ करनेवाले होंगे ॥१७३॥ उस समयके राजा अनीति वा अन्यायसे उत्पन्न हुई पदवि. योंमें तल्लीन होंगे, तपश्चरणके भारसे सर्वथा रहित होंगे, क्रूर शतमेकोनसप्ततिः ॥१६९॥ एषां मध्ये गता मुक्ति केचिद्धर्मप्रभावतः । गमिष्यंति द्रुतं केचित्सत्यं जानीहि पार्थिव ॥१७०॥ दुःषमसुषमाख्यस्य स्वरूपं गदितं मया । अतो दुःषमकालस्य शृणु श्रेणिक सांप्रतम् ॥१७१॥ वईमाने गते मुक्तिं धर्मतीर्थः प्रवर्तते । सुरासुरनराधीशैः कृतकल्याणकोत्सवे ॥ १७२ ॥ सुकेवलिवृषाख्यानहीने देवागमोज्झिते । भविष्यति नरा दुष्टा महानर्थप्रकारिणः ॥१७३॥ अनीतिपदवीरक्तास्तपोभारविवर्जिताः । क्रूरा नृपाः भविष्यंति प्रजा
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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