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गौतमचरित्र। होते हैं, संमूर्छन गर्भ और उपपाद तथा उनकी योनियां सचित्त, अचित्त, सचित्ताचित्त, शीत, उष्ण, शीतोष्ण, संतृत, विकृत, संटतविस्त ये नौ प्रकारकी हैं ॥ ९॥ जिन जीवोंके ऊपर उत्पन्न होते समय जरा आती है, जो अंडेसे उत्पन्न होते हैं और जिनके ऊपर जरा नहीं आती और उत्पन्न होते ही भगने लग जाते हैं वे जरायुज, अंडज और पोत तीनों प्रकारके जीव गर्भसे उत्पन्न होते हैं तथा देव, नारकी उपपादसे उत्पन्न होते हैं और बाकीके सब जीव संमूर्छन उत्पन्न होते हैं ॥ १० ॥ ऊपर योनियोंके जो नौ भेद बतलाये हैं वे जिनागममें संक्षेपसे बतलाये हैं । यदि वे भेद विस्तारके साथ कहे जांय तो चौरासीलाख होते हैं ॥ ११ ॥ निसनिगोद, इतर निगोद, पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्नि कायिक और वायुकायिक इनकीसात सात लाख योनियां हैं इनमें जीव सदा परिभ्रमण किया करते हैं ॥ १२ ॥ वनस्पतिकायिक जीवोंकी दसलाख योनियां हैं। दो इंद्रिय, ते इंद्रिय चौ इंद्रिय इनकी दो दो लाख योनियां हैं। इनमें ये जीव प्रसम्मूर्छनगर्भोपपादात्तेषां जनिस्त्रिधा । सचित्तशीतसंवृत्ता योनयो मिश्रसेतराः ॥९॥ जराचंडजपोतानां गर्भस्तथौपपादिकः । अमरनारकाणां च शेषाः सम्मूच्छिनो मताः ॥१०॥ योनयो नवधाः प्रोक्ताः संक्षेपतो जिनागमे । विस्तरेण तथा ज्ञेयाः चतुरशीतिलक्षिकाः॥११॥ नित्येतरनिगोदेषु चतुः स्थावरकेषु च । द्विचत्वारिंशल्लक्षासु जीवो भ्राम्यति नित्यशः ॥ १२ ॥ दशलक्षाः हरित्काये षट् विकलेंद्रियेषु च । जन्ममरणदुःखानि तत्र भुक्ते निरंतरम् ॥ १३ ॥ असुरोक्तांग