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________________ पांचवां अधिकार। [१५६ यह जीव अनादिकालसे स्वयं सिद्ध है ॥ ३ ॥ यह जीव भव्य, अभव्यके भेदसे दो प्रकारका है, अथवा संसारी और सिद्धके भेदसे दो प्रकारका है, अथवा सेनी असेनीके भेदसे दो प्रकारका है अथवा त्रस और स्थावरके भेदसे दो प्रकारका है ॥ ४ ॥ उनमेंसे पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक ये पांच स्थावरोंके भेद हैं और दोइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौइंद्रिय, पंचेंद्रिय, ये चार त्रसोंके भेद हैं ॥५॥ स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, और कर्ण ये पांच इंद्रियां हैं तथा स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शद्ध ये उन इंद्रियोंके विषय हैं ॥६॥योनियां तीन प्रकारकी हैं, शंखावर्त, पद्मपत्र और वंशपत्र। इनमेंसे शंखावर्त योनिमें कभी गर्भ नहीं रहता यह बात निश्चित है ॥७॥ पद्मपत्र योनिसे तीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र आदि पदवीधर और साधारण पुरुष उत्पन्न होते हैं तथा वंशपत्र योनिसे साधारण मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं ॥८॥ जीवोंके जन्म तीन प्रकारसे जीवद्यो जीविष्यति जीवति । बहिरभ्यंतरैः प्राणैर्जीवः सोऽनादिसिद्धकः ॥ ३ ॥ भव्याभव्यैर्द्विधा जीवः सिद्धाः संसारिणः पुनः । समनस्कामनस्काश्च त्रसस्थावरिणस्तथा ॥ ४ ॥ पंचधा स्थावरास्तत्र पृथ्वीजलाग्निवायवः । बनस्पतिस्तथा ज्ञेयास्त्रसाश्च द्वींद्रियादयः॥१॥ स्पर्शनरसनघाणचक्षुःश्रोत्रंद्रियाणि च । स्पर्शरसौ तथा गंधो वर्णः शब्दस्तदर्थकाः ॥६॥ शंखकुमुदवंशानामावर्तभेदतस्त्रिधा । योनयस्तत्र चाद्यायां गर्भो नास्ति विनिश्चितम् ॥७॥ पद्मयोनौ जिनाश्चक्रिकेशवाः प्रतिशत्रवः । हलिनोऽपि प्रजायंते शेषायां विश्वमानवाः॥८॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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