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________________ ६] गौतमचरित्र । द्वारा उस भरतक्षेत्रके छह भाग हो गये हैं जो कि छह देश कहलाते हैं ॥ २२ ॥ उसी भरतक्षेत्रमें एक मगध नामका देश है जो कि पृथिवीके तिलकके समान शोभायमान है, अनेक महा उत्सवोंसे सुशोभित है और अनेक धर्मात्मा सज्जनोंसे भरपूर है || २३ || इसके सिवाय मटम्ब, कर्वट, गांव, खेट, पत्तन, नगर, वाहन, द्रोण आदि सब बातों से वह देश सुशोभित है ।। २४ ।। उस देशके वृक्ष बडे ऊंचे हैं, सुंदर हैं, सुख देनेवाले हैं, घनी छाया और फल फूलों से सुशोभित हैं तथा ठीक कल्पवृक्षोंके समान जान पड़ते हैं || २५ | उस देशके खेतों में मनोहर धान्य सदा उत्पन्न होते रहते हैं और समस्त प्राणियोंको जीवनदान देनेवाली औषधियां भी खूब उत्पन्न होती हैं ॥ २६ ॥ वहांके सरोवर श्रेष्ठ कवियोंके वचनोंके समान शोभायमान हैं, क्योंकि जिसप्रकार श्रेष्ठ कवियोंके बचन गंभीर होते हैं उसीप्रकार वे सरोवर भी गंभीर (गहरे ) थे, कवियोंके बचन जैसे निर्मल होते हैं उसीप्रकार वे सरोवर भी निर्मल थे, कवियोंके बचन जैसे सरस (वीर, करुणा आदि नौ रसोंसे भरपूर ) होते हैं सदेशकम् ||२२|| धर्मिष्ठसज्जनाकीर्णो नानामहोत्सवैर्युतः । मगधस्तत्र देशोऽस्ति टथिवीतिलकोपमः ॥ २३ ॥ मटंबकर्वटग्रामखेटपत्तनभासितः। नगरवाहनद्रोणपुरस्सरसमावृतः ॥ २४ ॥ ( युग्मम् ) ॥ यत्र महीरुहा भांति सफलाः प्रोन्नता वराः । सुखदाः सघनच्छायाः सुरवृक्षा इवापराः ॥२५॥ यत्र क्षेत्रेषु सस्यानि प्रोत्पद्यन्ते निरंतरम् | कांतानि विश्व - जन्तूनां सज्जीवौषधानि च ॥ २६ ॥ सरांसि यत्र भासते निम्नानि
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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