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________________ प्रथम अधिकार। अथानन्तर-इस मध्यलोकके मध्यभागमें जम्बूटक्षसे सुशोभित, लवणसमुद्रसे घिरा हुआ और एक लाख योजन चौड़ा जम्बूद्वीप शोभायमान है॥१७॥ उस जम्बूदीपके मध्यमें सुदर्शन नामका मेरु पर्वत है जो कि देवोंका स्थान है तथा उसी जम्बूद्वीपमें सोने चांदीके अनादि कालसे चले आए और सदा रहनेवाले छह कुलाचल पर्वत हैं ॥१८॥ उस मेरु पर्वतके पूर्व पश्चिमकी ओर बत्तीस विदेह हैं जहांसे भव्यजीव सदा मोक्ष प्राप्त करते रहते हैं ॥१९॥ उसी मेरुपर्वतके दक्षिण उत्तरकी ओर छह भोगभूमियां हैं जहाँके स्त्री पुरुष मरकर सदा पहले और दूसरे स्वर्गमें ही उत्पन्न होते रहते हैं ॥२०॥ उन भोगभूमियोंके दक्षिण उत्तरकी ओर भरत और ऐरावत नामके दो क्षेत्र हैं जिनके मध्यमें रूपामय विजयाई पर्वत पड़े हुए हैं और उत्सर्पिणी अवसर्पिणीके छह छह काल जिनमें सदा घूमा करते हैं ॥ २१ ॥ उनमेंसे भरतक्षेत्रकी चौड़ाई पांचसौ छव्वीस योजन छह कला (५२६ योजन) है तथा विजयार्द्ध पर्वत और गंगा, सिंधु नामकी दो नदियोंके नविस्तृतः ॥ १७ ॥ मध्ये सुदर्शनो नाम गिरीद्रोऽस्ति सुरालयः । षभिकुलाचलैर्युक्तः स्वर्णरूपमयै(वै ः ॥ १८ ॥ पूर्वपश्चिमदिग्भागे द्वात्रिंशच्च विदेहकाः । मेरोर्यत्र जना भव्याः मुक्तिं यांति निरंतरम् ॥ १९ ॥ दक्षिणोत्तरयोस्तस्य षड्भोगभूमयो मताः । तत्रत्या मानवा नार्यों यांति कल्पद्वयं सदा ॥२०॥ तद्दक्षिणोत्तरे भागे भारतैरावताभिधे । क्षेत्रे षट्कालसंयुक्ते स्तो रूप्याद्रिसमाकुले ॥२१॥ षड्विंशत्यधिकं पंचशतयोजनविस्तृतम् । भारतं तत्र सत्क्षेत्रं स षट्कलं
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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