SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४] गौतमचरित्र। सम्यग्दर्शनसे असन्त शुद्ध हैं, सम्यक्चारित्रसे सुशोभित हैं और अपने आत्माको तथा अन्य सब जीवोंको तारनेके लिये सदा तत्पर रहते हैं वे मुनिराज ही विद्वानोंके द्वारा गुरु माने जाते हैं ॥१८३॥ जिन गुरुओंसे मिथ्याज्ञानका नाश होता है और जो धर्म, अधर्मका उपदेश देनेवाले हैं, वे ही गुरु भव्य जीवोंको सेवन करने योग्य हैं ॥ १८४ ॥ इस नरकरूपी गढ़ेमं पड़े हुए जीवोंको गुरुके विना माता, पिता, भाई, बंधु आदि कोई भी नहीं निकाल सकता ॥ १८५ ॥ जो अनेक प्रकारके आरम्भ करते हैं, जो मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्रसे दूषित हैं और जिनका हृदय कामसे व्याकुल रहता है, ऐसे पाखण्डी कभी गुरु नहीं माने जासकते॥१८६॥ जो क्रोध आदि कषायोंसे भरपूर हैं, जो क्रूर हैं, जिनका हृदय मिथ्याशास्त्रों में आसक्त रहता है और जो संसाररूपी महासागरमें स्वयं डूब रहे हैं, वे दूसरे लोगोंको किस तरह तार सकते हैं ॥ १८७ ॥ जो लोग भगवान् जिनेन्द्रदेवकी वाणीको नहीं सुनते हैं, वे देव, अदेव, धर्म, अधर्म, गुरु, सञ्चारित्रविभूषिताः । स्वपरतारणे शक्ताः गुरवस्ते मता बुधैः॥१८॥ कुबोधनाशनं येभ्यो भवति भव्यदेहिभिः । त एव गुरवः सेव्याः प्रोक्तारो वृषपापयोः ॥१८४॥ नरककुहरे जंतून् निपततो गुरोविना। न रक्षितुमलं केचित् मातृपित्रादिबांधवाः॥१८५॥ बहारंभसमायुक्ताः मिथ्याढग्ज्ञानदूषिताः। कामाकुलितचेतस्काः गुरवस्ते कथं मताः।१८६। क्रोधादिपूरिताः क्रूराः कुशास्त्रासक्तचेतसः । ये बुडंति भवाब्धौ ते तारयंति परान् कथम् ॥ १८७ ॥ देवादेवं वृषाधर्म गुरुं चाप्यगुरुं
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy