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________________ चौथा अधिकार। [ १२७ शोभा नहीं देता, ज्ञानके विना तपस्वी शोभा नहीं देता और पतिके विना सुंदर स्त्री शोभा नहीं देती उसी प्रकार विना शील पालन किये मनुष्य भी शोभा नहीं देता ॥ १४८ ॥ जो मनुष्य शील पालन करते हैं उनके विघ्न भी उत्सवका रूप धारण कर लेते हैं। शीलवतको पालन करनेवाले सेठ सुदर्शनकी पूजा अनेक देवोंने मिलकर की थी॥ ३४९ ॥ परिग्रह पापोंका घर है, परिणामोंमें कलुषता उत्पन्न करनेवाला है और नीति तथा दयाको नाश करनेवाला है। जो इसे धारण करते हैं उनके परिणाम कभी अच्छे नहीं होसकते ॥१५०॥ यह परिग्रह एक प्रकारकी नदीका पूर है। यह पूर क्या क्या अनर्थ नहीं करता है अर्थात् संसारमें जितने अनर्थ होते हैं वे सब परिग्रहसे ही होते हैं। यह पूर धर्मरूपी वृक्षोंको उखाड़ फेंकता है और लोभरूपी समुद्रको बढ़ा देता है ॥१५१॥ यह परिग्रहरूपी पूर मनरूपी हंसोंको भय उत्पन्न करता है, मर्यादारूपी किनारेको तोड़ देता है, रागरूपी मछलियोंसे भर जाता है और तृष्णारूपी तरंगोंसे घृतं विना यथा भोज्यं विना ज्ञानेन तापसः । भ; विना शुभा नारी शीलेनर्ते तथा नरः ॥१४८॥ विघ्नोप्युत्सवतां याति शीलव्रतयुतस्य नुः । पूजितस्य सुरस्तोमैः श्रेष्ठिसुदर्शनस्य वा ॥१४९॥ परिग्रहमघागारं ते गृहंति दुराशयाः । कालुष्योत्पादकं नित्यं नीतिदयाविनाशकम् ॥ १५० ॥ परिग्रहनदीपूरः किं न करोत्यनर्थकम् । पातको धर्मवृक्षाणां लोभसागरवर्द्धकः ॥१५१॥ भयदो चित्तहंसानां मर्यादाकूलभंजकः । रागमत्स्यसमायुक्तस्तृष्णातरंगसंकुलः ॥ १५२ ॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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