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गौतमचरित्र। करता है वह तीनों लोकोंमें अपने यशको नष्ट करता है॥१४२।। ब्रह्मचर्यका पालन न करनेसे समस्त संपदाएं नष्ट होजाती हैं, सब प्रकारकी आपत्तियां आजाती हैं और अनेक प्राणियोंकी हिंसा होती है ।। १४३ ।। जो मनुष्य इस शुभ शीलव्रतको पालन करता है वह मोक्षका स्वामी होता है। यह शीलव्रत पापरूपी कीचड़को धोनेके लिये मेघकी धाराके समान है और कुलके समस्त कलंकों को नाश कर देनेवाला है ॥१४४।। जो मनुष्य शीलवत पालन करता है वह स्वर्गमें जाता है और वहांपर सुंदर विलासोंको धारण करनेवाली अनेक देवियां उसकी सेवा करती हैं। १४५ ।। इस शीलव्रतके माहात्म्यसे अग्नि वरफ होजाती है, शत्रु मित्र होजाते हैं और सिंह मृगके समान होजाते हैं ॥ १४६॥ जिसमकार विना लवणके भोजन व्यर्थ है ( स्वादिष्ट नहीं होता) उसी प्रकार विना शील पालन किये गुणोंको बढ़ानेवाले समस्त व्रत व्यर्थ होजाते हैं ॥१४७॥ जिसप्रकार छीके विना भोजन वरम् । सो यशोभानको नित्यं भवेऽत्रैलोक्यमध्यके ॥१४२॥ निःशेषसंपदां हर्तृ मंदिरं सकलापदाम् । हिंसनं प्राणिवर्गाणामस्त्यब्रह्मव्रतं -सदा ॥ १४३ ॥ पालयति शुभं शीलं यः स मुक्तिवरो भवेत् । पापपंकांबुदं श्लाघ्यं कुलकलंकनाशनम् ॥ १४४ ॥ शीलव्रतान्वितो यस्तु लोके स भज्यते दिवि । सुरसीमंतिनीवृंदैश्चारुविभ्रमधारणैः ॥१४५॥ सुशीलव्रतमाहात्म्यादग्निस्तुषारतां व्रजेत् । अरातिर्मित्रतां चापि सिंहादिर्घगतुल्यताम् ॥ १४६॥ सुव्रतानि समस्तानि गुणदानानि वै वृथा। विना शीलेन जायते लेपानिलवणेन वा ॥१४॥