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________________ ११२] गौतमचरित्र। जिनमें मुनि, अजिंका, कल्पवासी देव, ज्योतिषी देव, व्यंतर देव, भवनवासी देव, कल्पवासी देवांगनाएं, ज्योतिषी देवोंकी देवांगनाएं, व्यंतर देवोंकी देवांगनाएं, भवनवासी देवोंकी देवांगनाएं, मनुष्य और पशु बैठे हुए थे ॥६९॥ अशोकक्ष, दाभयोंका बजना, छत्र, भामंडल, सिंहासन, चमर, पुष्पदृष्टि और दिव्यध्वनि इन आठों प्रातिहार्योसे वे भगवान सुशोभित थे ॥७०॥ उस समय वे श्रीवीरनाथ भगवान अठारह दोषोंसे रहित थे, चौतीस अतिशयोंसे सुशोभित थे, और ऊपर लिखी सब विभूतिके साथ विराजमान थे॥७१॥ इसप्रकार भगवान वीरनाथको सिंहासनपर विराजे हुए तीन घंटे बीत गये तथापि उनकी दिव्यध्वनि नहीं खिरी ॥७२॥ यह देखकर सौधर्म इंद्रने अपने अवधिज्ञानसे विचार किया कि यदि गौतम आजाय तो भगवानकी दिव्यध्वनि खिरने लग जाय ॥७३॥ गौतमको लानेके लिये इंद्रने बूढे का रूप बनाया जोकि पद पदपर कंप रहा था और फिर वह ब्राह्मण नगरमें जाकर गौतमशालामें पहुंचा ॥७४॥ उससमय लकड़ी रत्नानां तुंगप्रासादमंडितैः ॥६८॥ मुनिस्तथायिकाकल्पज्योतिर्यंतरभावनाः । सुरास्तदंगना भूपाः पशवो द्वादशी सभा ॥६९॥ अशोको दुंदुभिश्च्छत्रं प्रभामंडलमासनम् । पुष्पवृष्टि निर्दिव्यः प्रातिहार्याणि चामरम् ॥७०॥ एतद्विभूतिसंयुक्तो वीरनाथोऽभवज्जिनः । निःशेषदोषनिर्मुक्तश्चतुस्त्रिंशातिशयिकः ॥ ७१ ॥ याममात्रे व्यतिक्रांते सिंहासनप्रसंस्थिते। अथ श्रीवीरनाथस्य नोऽभवदध्वनिनिर्गमः ॥७२॥ चिंचितं प्रथमेंद्रेण स्वावाधलोचनैरिति । चेगौतमागमः स्याद्धि तदास्य
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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