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________________ प्रथम सग* हुए अपनी प्रियाओंके साथ स्नेह-रससे भरे आनन्द ले रहे थे। इसी समय आकाशमें गड़गड़ाहट सुनाई दी और इन्द्र धनुष तथा बिजलीके साथ बादल छाये दिखाई दिये। उस समय आकाशमें कहीं स्फटिक, शंख, चन्द्रमण्डल, रजत और हिमके पिण्डके समान उज्ज्वल अभ्रपटल दिखाई देता था, कहीं शुक-पिच्छ और इन्द्रनीलके समान प्रभावाला नील अभ्र-पटल दिखाई देता था। कहीं कज्जल, लाजवर्ग और रिष्टरत्नको सी प्रभावाला श्याम अभ्रपटल दिखाई देता था। इस प्रकार देखने योग्य भिन्न भिन्न रंगोंवाले बादलोंको देखते और उनका गर्जन सुनते हुए राजाने कहा,"अहा ! यह तो बड़ी विचित्र रमणीयता दिखाई दे रही है। इसी तरह वे सामनेकी और देख रहे थे कि एकाएक हवाके झोंकेसे सारे बादल उड़ गये। फिर आकाश ज्योंका-त्यों हो गया । यह. देख राजाको वैराग्य उपजा और उन्होंने सोचा कि यह कैसे आश्चर्यकी बात है कि इतने बादल सेमरकी रूई की तरह देखतेदेखते उड़ गये! ठीक इसी तरह संसारकी सभी चीजें क्षण-भरमें नष्ट हो जाती हैं। कहा भी है कि लक्ष्मी बिजलीकी चमकके समान है और जैसे राह चलते-चलते मुसाफिरोंको विश्राम लेनेके लिये वृक्ष मिल जाते हैं, वैसे ही इष्टोंका समागम होता है । इस के सिवा जो सवेरा दिखाई देता है, वह दो पहरमें नहीं और जो दो पहरमें दिखाई देता है, वह रातको नहीं दिखाई देता । इसी तरह इस संसारमें सभी पदार्थ अनित्य हैं। ऐसो सुन्दर जवानी इन्द्रचापकी तरह देखते-देखते नष्ट हो जाती है, प्रियजनोंके निर्वा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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