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________________ श्रीपाल-चरित्र। जैन साहित्यमें हमारे श्रीपाल-चरित्रके अनुसार अन्य किसी भाषामें ऐसा मनोरञ्जक चरित्र अबतक कहीं नहीं छपा। इसमें श्रीपाल राजाका सम्पूर्ण चरित्र बड़ी हो सरल, सरस, सुन्दर और सुमधुर भाषामें उपन्यासके ढंगपर लिखा गया है, जो हर एक स्त्री, पुरुष और बालक बालिकाओंके पढ़ने सुनने और समझने योग्य है। ऐसी सुन्दर शैलीसे लिखा गया है, कि एक बार पढ़ना आरम्भ करनेपर बिना खतम किये छोड़नेकी इच्छा ही नहीं होतो। मनमोहक भावपूर्ण सोलह चित्र लगा कर पुस्तकको शोभा सौगुनी बढ़ा दी गयो है, जिन्हें देखनेपर श्रीपाल कुमारका सारा चरित्र बायस्कोपकी तरह आंखोंके सामने नाचने लगता है। अगर आज भारतमें छापाखाना न होता तो केवल इसके एक चित्रका ही मूल्य एक अशर्फी होता । इतना होनेपर भी इस अनुपम सर्वाङ्ग-सुन्दर सचित्र ग्रन्थ-रत्नका मूल्य सुनहरी रेशमी जिल्दका केवल २॥) रखा है। हम यह दावेके साथ कहते हैं कि आजतक आपने अन्य किसी भाषामें ऐसा सुन्दर श्रीपालचरित्र नहीं देखा होगा। चरित्रके अन्तमें नवपद ओलीकी विधि दे दी गयी है । इसलिये नवपदकी ओली करनेवालोंके लिये यह अत्यन्त उपयोगी हो गया है। आजही मंगवाइये। देर न कीजिये। मिलनेका पता-पंडित काशीनाथ जैन। मु० बंबोरा, पोष्ट भोण्डर (नोमच-मेवाड़)
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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