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________________ ३४ * पार्श्वनाथ चरित्र * ----- अपने बूढ़े मां-बापको वही फल लाकर खिला दूँ, जिससे वे सुखी हो जायें । अतएव उनकी आज्ञा लेकर मैं उस द्वीपमें गया और वहाँसे फल लाकर लौटा आ रहा था कि रास्तेमें थककर समुद्र में गिर पड़ा; परन्तु तुमने मुझे मौतके मुँहसे बचा लिया। अब मेरी यही इच्छा होती है कि, किसी तरह तुम्हारे इस उपकारका बदला चुकाऊँ ।” सार्थ- पतिने कहा - " तू क्या कर सकता है ?” शुकने कहा, – “हे सार्थेश ! यह फल तुम्हीं ले लो ।” सार्थेशने कहा, - “नहीं, इसे ले जाकर तुम अपने माता-पिताको दो।” शुकने कहा, - “मैं फिर वहाँ जाकर दूसरा फल ले आऊँगा ।" यह कह, वह फल सेठको देकर शुक उड़ गया । अनन्तर सार्थेश उस फलको लिये हुए क्रमश: जयपुर में आया । अपने साथवालोंको नगरके बाहर ही रखकर उसने अपने मनमें विचार किया कि, "यह फल मैं खाकर क्या करूँगा ? अच्छा हो, यदि यह फल राजाको दे दूँ, तो जिससे दुनियाकी भी कुछ भलाई हो ।” ऐसा विचारकर राजाकी भेंटके लिये मोतियोंसे भरे हुए थालके ऊपर वही फल रखे हुए वह दरबारमें आया । द्वारपालके साथ राजाके पास पहुँचकर उसने वह थाल राजाके सामने रख दिया । राजाने वह भेंटका थाल देख, विस्मय और आदरके साथ पूछा, “इसमें तुमने एक आमका फल किस लिये रख दिया है ? क्या मैंने कभी आम नहीं देखा है ?” यह सुन सार्थेशने कहा, "है स्वामी ! इस फलके गुण सुनिये । यह कह उसने विस्तारके साथ उस फलके गुण कह सुनाये । पश्चात् राजाने बड़े ही आनन्दले
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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