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________________ * आठवाँ सर्ग उठाकर अपनेको सञ्चा और मुझको झूठा प्रमाणित कर दिया है । इस प्रकार कलंकित होकर जीनेकी अपेक्षा मैं मृत्युको भेंटना हो अच्छा समझता हूं।" महीधरने कहा-"राजन् ! मैंने आपसे जो बात कही है, वह बिलकुल ठीक है। वह कभी भी मिथ्या नहीं हो सकती किन्तु मैं समझता हूं, कि श्रीगुमने अपनेको निर्दोष प्रमाणित करनेमें अवश्य किसी युक्तिसे काम लिया है—अवश्य इसमें कोई रहस्य छिपा हुआ है।" ___ मन्त्रियोंने भी महीधरकी इस बातका समर्थन किया। उन्होंने कहा-"सम्भव है कि श्रीगुप्तने मन्त्रके बलसे अग्नि-स्तम्भन कर दिया हो।" यह सुन मतिसागर नामक मन्त्रिने कहा-"यदि ऐसी ही बात है, तो हम लोगोंको इस सम्बन्धमें जांच करनी चाहिये। रथनुपुर नामक नगरमें एक विद्याधर रहता है। वह बड़ा ही सिद्ध है। उसे बुलाकर पूछनेसे अवश्य हो सारा रहस्य मालूम हो जायगा। ___ मन्त्रियोंकी इस बातसे राजा सहमत हो गया। इसलिये मतिसागर मन्त्रिने तुरत उस विद्याधरको बुला भेजा। उसके आनेपर उससे यह सब हाल कहा गया। उसने सुन कर राजासे कहा-“हे राजन् ! आप श्रीगुप्तको फिर लोहेका गोला उठानेकी आज्ञा दें। मैं दूसरेकी विद्याको स्तम्भन करनेवाली विद्या जानता हूं। यदि उसने किसी मन्त्र तन्त्र या विद्याके प्रभावसे यह चमत्कार दिखलाया होगा, तो अवश्य ही इस
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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