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________________ * पाश्वनाथ चरित्र वनराजने जरा भी आपत्ति न कर, सब पूजन-सामग्री राजकुमारको दे दी और स्वयं अपने महलको लौट आया। उधर नगर के. दरवाजे के पास दोनों मातंग पहलेसे ही राजाके आदेशानुसार छिपे खड़े थे। राजकुमारके वहां पहुंचते ही वे दोनों उसपर टूट पढ़े और तलवारसे उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस घटनाले चारों ओर हाहाकार मच गया । राजाने ज्योंहीं यह संवाद सुना कि द्वारवासिनी मन्दिर के पास किसीको हत्या कर डाली गयो है, त्योंहीं वह मनमें प्रसन्न होता हुआ वहां पहुंचा। आज शत्रुपर विजय मिलनेसे मानों उसके सिरका बहुत बड़ा भा उतर गया । किन्तु उसकी यह खुशी चन्द मिन्टोंसे अधिक समय न ठहर सकी । घटनास्थल पर पहुंचते ही उसने देखा कि वनराजके बदले राजकुमार मातंगों का शिकार बन गया है । यह देखते हो उसका माथा घूम गया और वह सिर पटक-पटक कर विलाप करने लगा । ५१० किन्तु अब विलाप करनेसे लाभ हो क्या हो सकता था ? उसने जो जो चालें चलीं, सबका फल विपरीत आया । प्रत्येक दावमें उसकी हार हुई और अन्तमें तो इस तरह बाजी ही पलट गयी । सवेरा होते ही उसने राजकुमारका अग्निसंस्कार कराया और वनराजको बुलाकर कहा, “हे वत्स ! तेरा भाग्य बड़ाहो बली है। मेरे पुरोहितकी सभी बातें सत्य प्रमाणित हुई । निःसन्देह तू पूर्ण भाग्यवान है ।" यह कह राजाने वनराजको उसके जन्म से लेकर अब रोकका सारा हाल कह सुनाया । अन्तमें
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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