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________________ ३० * पाश्र्श्वनाथ चरित्र # पुत्र ! अब आप कल सवेरे ही सेनासे सजधक कर नगरके बाहर चले जाइये ।” राजाकी यह कपट-कला मालूम हो जानेपर सवेरा होते हो राजकुमार सैन्य सजाकर नगरके बाहर निकले । राजा भो क्रोधमें आकर सेन्य लिये, युद्धकी सामग्रियोंसे सजे हुए नगरके बाहर निकल कर कुमारके सामने आये। दोनोंकी सेनाएँ परस्पर भिड़ गयीं। इसी समय राज्यके मन्त्रियोंने आपसमें विचार किया कि राजा यह बड़ा अनुचित काम कर रहे हैं। इसके बाद सब मन्त्रियोंने राजाके पास आकर कहा, " हे स्वामी ! तीक्ष्ण शस्त्रोंकी तो बात ही क्या है, फूलोंसे भी युद्ध करना उचित नहीं; क्योंकि युद्ध करनेमें विजय होना तो सन्देह-अ -जनक हैं। साथ हो प्रधानप्रधान पुरुषोंके नाशका भी भय रहता है । इसलिये जैसे ग्रहोंके नायक चन्द्रमा और सूर्यका नायक समुद्र है, वैसे हो आप भी प्रजाके नायक हैं । विना विचारे काम करनेसे सिवा बुराई भलाई नहीं होती, इसलिये आप विचारके साथ काम कीजिये । जो बिना देखे सुने बिना विचारे, बिना परीक्षा किये काम करता है, वह जयपुरके राजाकी तरह दुखी होता है । उसकी कथा इस प्रकार है : “विन्ध्याचल पर्वतकी भूमिपर अनेक वृक्ष हैं। वहाँ एक बहुत बड़ा और ऊँचा वट-वृक्ष है 1 उसपर एक जोड़ा शुक- पक्षीका रहता था ! सस्नेह काल निर्गमन करते हुए उन्हें एक पुत्र हुआ । माँ-बाप के पंखोंकी हवा और चूर्ण वगैरह खाकर वह बालक धीरे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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