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________________ ४६० * पार्श्वनाथ-चरित्र कर इस तीर्थ में स्नान करना चाहिये, ताकि हमलोग भी ऐसे ही सुन्दर मनुष्य हों। यदि त ऐसी ही सुन्दर स्त्री बन जाय, और मैं ऐसा ही सुन्दर पुरुष बन जाऊ, तो कितने आनन्दकी बात हो।" ___ बानरी,-"नाथ ! यह पुरुष बड़ा ही पापी है। आप इसकासा रूप क्यों चाहते हैं ? इसका तो नाम लेना और मुंह देखना भी महापाप है। देखो, यह अपनी माताको पत्नी बनानेके लिये हरण कर लाया है।" वानर और वानरीकी यह बातें सुनकर दोनोंको बड़ाही आश्चर्य हुआ। कुमार मनमें कहने लगा,–“जिस स्त्रीको मैं हरण कर लाया हूँ, वह मेरी माता कैसे हुई-यह समझायी नहीं पड़ता ; किन्तु फिर भी मैं देखता हूं कि मेरे मनमें उसके प्रति मातृभाव उत्पन्न हो रहा है। इसी तरह रानीने सोचा,-"यह युवक मेरा पुत्र कैसे हुआ सो समझ नहीं पड़ता, किन्तु इसे देखकर मेरे मनमें वात्सल्य भाष अवश्य उत्पन्न होता है। दोनों इस प्रकार बड़े असमंजसमें पड़ गये। कुमारने आदरपूर्वक बानरीसे पूछा,"हे भरे ! तूने जो बात कही, वह क्या वास्तवमें सत्य है ?" बानरीने कहा-“निःसन्देह, मेरा कथन सत्य है। यदि कोई सन्देह हो, तो इस वममें एक शानी मुनि हैं, उनसे पूछकर अपना सन्देह निवारण कर सकते हो। यह कह घे दोनों अन्तर्धान हो गये। कुमार आश्चर्य करता हुआ वनमें मुनिके पास उसी समय पहुंचा और उनसे पूछा हे भगवन् ! क्या वानरीकी बातें सच हैं ? यह सुन मुनिने कहा, "हे भद्र ! उसको बातें बिलकुल
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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