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________________ * सप्तम सग ५८६ - win रानीके मनमें भी वात्सल्य भाव उत्पन्न हुआ और वह भी मदनांकुर को बारंबार स्क दोहसे देखने लगी। वास्तव में उन दोनोंके प्रदय में माता का श्रेमभाव ओर भार रहा था, किन्तु वे दोनों उले म असमर्थ थे। इधर नगर में चारों ओर हाहाकार मच गया। आकाशकी ओर हाथ उठा Cखा कर कहने लग, को कोई विधायर उठायें लिये आता है। राजाने पसाचार सुना डम्ब उसे भी असीम दुःख हुआ, किन्तु कोई ५० ५ देख कर चुपचाप बैठ रहा । इस একা মনে a এ.এ এবং তত্ত্বা ঘিন বই दुःखो रहने लगा। पूर्व को शु..., . स समय देश प्राप्त किया था, उसे अधिशाम का हुआ। अतः कह अपने मन में कहने लगा... ! मेरा भाई माताको श्रो बुद्धिसे हरा किया जा रहा है। यह सोच का उस देश का कारण किया और ঘ বৰথঃ লিঃ, এ লাস্কু জানা স্বাস্থ তা অ, वहीं रहक वृक्षार वे दोनों भी आ बैठे। मस देखकर, मदनांकुर को सचेत करने के लिये दोनों इस प्रकार बातचीत करने लगे। यानर,---"हे प्रिये! यह तीर्थ बहुत ही उत्तम और अभीष्टदायक है, इस तीर्थक से अवगाहन परनेले तिर्यञ्च मनुष्य होते हैं और मनुष्य केल्य प्राप्त करते हैं। देखो, यह दोनों मनुष्य फैसे सुन्दर है। हमलोगोंको भी मनमें यही इच्छा रख
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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