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________________ * सप्तम सर्य किया। ज्योंहो वे वहांसे हटे, त्योंहीं वयरसेनने कन्थाको उठा कर कन्धेपर डाल लिया, दण्ड हाथमें ले लिया और पादुकायें पैरमें पहन लीं। पादुका पहनते ही वह आकाश मार्गसे उड़ा और नगरमें चला गया। इधर कुछ समय तक चोरोंने उसके बुलानेको प्रतीक्षा की, किन्तु जब उसने न बुलाया, तब वे आप ही वहां पहुंचे। जाकर देखा तो वयरसेन नदारद ! वे उसका कपट समझ गये पर लाचार, कोई उपाय न होनेके कारण चुपचाप अपने-अपने स्थानको चल दिये । उधर वयरसेन इन चीजोंको लेकर अपने एक मित्रके यहां गया और वहां इन चीजोंको छिपाकर रख दिया। वह प्रतिदिन कन्थाको झाड़कर उससे पांचसौ स्वर्णमुद्रायें प्राप्त करता और पूर्ववत् उन्हें दानधर्म और मौज-शौकमें खर्च करता। इसी तरह अब वह फिर पूर्ववत् बड़ी शान-शौकतके साथ घूमने और चैनकी वंशी बजाने लगा। ___ वयरसेनकी यह अवस्था देख बुढ़िया समझ गयी, कि फिर इसके हाथ कुछ माल लगा है। अतएव उसने अपनी दासी छारा वयरसेनके निवास स्थानका पता लगवाया। पता लग जानेपर उसने अपनी पुत्रोको श्वेत वस्त्र पहनाये और उसे वयरसेनके पास ले जाकर कहा,-“हे वत्स! मैंने उस दिन तुझे थोड़ी देरके लिये बाहर जानेको कहा था, किन्तु तू तो फिर वापस आया ही नहीं। जिस दिनसे तू गया उसी दिनसे मगधाकी अवस्था बहुत ही खराब हो रही हैं। इसने खाना-पीना और
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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