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________________ ७६० * पाश्र्वनाथ चरित्र # झगड़ा हो रहा है। इसमें कोई चीज ऐसी भी नहीं हैं, जिसके विभाग किये जा सकें ।" यह सुन वयरसेनने कहा,“इन असार वस्तुओंके लिये इतना झगड़ा ? मैं तो समझता था, कि तुम लोग किसी मूल्यवान वस्तुके लिये लड़ रहे हो ।” यह सुन चोरोंने कहा, "भाई ! तुम्हें इनका रहस्य मालूम नहीं है, इसीसे तुम ऐसी बात कहते हो। हम लोगोंने जो यह तीन चीजें प्राप्त की हैं वह तीनों ही अनमोल हैं।" वयरसेनने पूछा, “ इनमें ऐसी क्या विशेषता है, जिससे तुम लोग इन्हें अनमोल कह रहे हो । क्या इनके अच्छे दाम आ सकेंगे ?” यह सुन एक चोरने बतलाया कि- “ इस श्मशान में एक सिद्ध पुरुष महाविद्याकी साधना करता था । वह जब छः मासतक साधना करता रहा तब उस विद्याकी अधिष्ठायिका देवीने प्रसन्न हो उसे यह तीनों चीजें दी थीं। उसी सिद्ध पुरुषको मारकर हमलोग उसकी यह चीज ले आये हैं। इस कन्थाको झाड़नेसे प्रतिदिन पांचसौ स्वर्णमुद्रायें गिरती हैं, इस दण्डको पास रखनेसे संग्राम में विजय मिलती है और पादुका पहनने से आकाशमें विचरण किया जा सकता है। " -- - चोरकी यह बातें सुनकर वयरसेनको बड़ा ही आनन्द हुआ । उसने कहा, – “चिन्ता न करो ! मैं इसी समय झगड़ा मिटाये देता हूं। तुम चारों जन थोड़ी देरके लिये श्मशानके चारों ओर चले जाओ। मैं सोच-विचार कर जब तुम्हें बुलाऊ तब मेरे पास आना ।" यह सुनकर चोरोंने वयरसेनकी बात मानकर ऐसा ही
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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