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________________ ४५४ * पार्श्वनाथ-चरित्र आधी राततक वयरसेन जागता रहा। इसके बाद अमरसेनको जगाकर वयरसेन सो रहा। सुबह होते ही दोनों वहांसे चल पड़े। मार्गमें एक सरोवर मिला। वहां दोनों जन मुख शुद्धि कर नित्य कर्मसे निवृत्त हुए। उस समय फलका गुण बतलाये बिनाही वयरसेनने राज्य दायक फल बड़े भाई अमरसेनको खिला दिया और दूसरा फल स्वयं खा गया। इसके बाद दोनों जन आगे बढ़े। दूसरे दिन सुबह वयरसेनने एकान्तमें जाकर दतून की तो उस फलके प्रभावसे पांच सौ स्वर्णमुद्रायें उसके सामने आ पड़ी। अब अमरसेनके साथ रहते हुए भी वयरसेन भोजनादिकमें विपुल धन व्यय करने लगा। यह देख कर अमरसेनने पूछा--"भाई ! तेरे पास यह धन कहांसे आया ?" वयरसेनने वास्तविक भेदको प्रकट करना उचित न समझ कर कहा,"चलते समय मैंने पिताजीके खजानेसे यह धन ले लिया था।" यह सुनकर अमरसेन चुप हो रहा। इसी तरह छः दिन बड़ी मौजमें कटे। सातवें दिन वे दोनों जन काञ्चनपुर नामक एक नगरमें जा पहुंचे। उस समय दोनों जन परिश्रमके कारण थक गये थे इसलिये नगरके बाहर एक उद्यानमें विश्राम करने लगे। कुछ देरमें अमरसेन सो गया और वयरसेन भोजन-सामग्री लाने के लिये नगर में चला गया। दैवयोगसे इसी दिन उस नगरके राजाकी शूलवेदनाके कारण मृत्यु हो गयी। उसे कोई संतान न थी इसलिये नये राजाको खोज निकालनेके लिये नियमानुसार हस्ती, अश्व, कलश छत्र
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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