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________________ * सप्तम सर्ग * और मोक्षकी प्राप्ति होती है। पूजा तीन प्रकारकी है--पुष्प पूजा ( अंगपूजा', अक्षतपूजा ( अग्रपूजा ) और भावपूजा इनमेंसे पुष्पपूजा प्राणियोंके लिये विशेष फलदायक है। किसीने कहा भी है, राजा सन्तुष्ट होनेपर एक गाँव दे सकते हैं, गांवका जागिरदार सन्तुष्ट होकर एक खेत दे सकता है और खेतका मालिक प्रसन्न होनेपर दो-चार मूठी अन्न दे सकता है, किन्तु सर्वज्ञ जिनेश्वरदेव सन्तुष्ट होनेपर वह अपना पद दे सकता । पुष्पपूजासे चयरसेन राजकुमारको राज्यकी प्राप्ति हुई थी। वह कथा इस प्रकार है :-- -- - anwaamananesam mer fortstatxts.txt-I-TatoryteITIZxxt-To-xa! 5 ** **** ******* ** **** *** * ** वयरसेनकी कथा। ***** ****** ** ** *** ** इस भरतक्षेत्रमें ऋषभपुर नामक एक सुप्रसिद्ध नगर है । बह समृद्धि और प्रासाद श्रेणियोंसे सुशोभित था! वहां गुण सुन्दर नामक एक न्यायी राजा राज्य करता था। उसी नगरमें रम श्रद्धाल, सदाचारो और विचारशील अभयंकर नामक एक वणिक रहता था। वह जैन धर्मानुरागी और श्रावक था। उसके कुशल. मती नामक एक स्त्री थी। वह भी निरन्तर देवपूजा, दाल, सामायिक और प्रतिक्रमण आदि अनेक पुण्यकार्य किया करती थी। उस वणिकके सरल प्रकृतिवाले दो सेवक थे। उसमेंसे एक गृहकार्य करता था और दूसरा गायें वराता था। एक बार वे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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