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________________ *सतमसग * कि वह ताम्रपात्र कहां है? लोगोंने उसे बतलाया कि तुम्हारे पिताजी उसे ले गये हैं। यह सुनकर दुर्विनीतको विश्वास हो गया कि अवश्य पिताजीने किसी औषधिके प्रयोगसे ताम्रपात्रको स्वर्णपात्र बना दिया है । यह सोचकर वह औषधिकी खोज करनेके लिये कनकके पैर देखता हुआ जंगलकी ओर चला। चलते-चलते जब वह उस शिलाके पास पहुंचा, तब उसे एक नया वृक्ष दिखायी दिया। उसने सोचा कि हो-न-हो, पिताजीने इसी वृक्षके पत्तोंसे ताम्रपात्रको स्वर्णपात्र बनाया है। यह सोच कर वह उस शिलापर जूतेके साथ पैर रख, उस वृक्षके पत्ते तोड़ने लगा। उसकी यह धृष्टता देखकर शिलाके अधिष्ठायक देवताको क्रोध आ गया और उसने उसी समय दुर्विनीतको भूमिपर गिरा दिया। इससे दुर्विनीतके चार दांत टूट गये और वह अपना सा मुंह लेकर डेरेको लौट आया। कनकने जब उससे दांत टूटनेका कारण पूछा, तो वह कोई सन्तोषजनक उत्तर न दे कसा। ___ एक दिन कनकने शुकको बुलाकर कहा,-“हे शुकराज! चलो, हमलोग कहीं एकान्तमें चलकर कुछ बातचीत करें। मैं तुमसे कुछ आवश्यक बातें पूछना चाहता हूँ।" कनककी यह बात सुन शुक उसके साथ हो लिया और दोनों जन जंगलके एकान्त भागमें जाकर बातचीत करने लगे। कनकने कहा,"हे शुकराज ! हे बुद्धिविशारद ! पहले तुमने जो बात कही थी वह सत्य सिद्ध हुई। स्पर्शपाषाण मुझे मिल गया है। अब यह बतलाइये कि उसकी प्रतिमा किस प्रकार बनवायी जाय ?" २८
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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