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________________ * पार्श्वनाथ चरित्र * शुक- प्रिये ! व्यापारकी दृष्टिसे इसे मैं भाग्यवान नहीं कहता । इसके हाथों एक जिनबिम्ब और जैन तीर्थकी स्थापना होनेवाली है, इसीसे भाग्यवान बतलाता हूं । शुकी - क्या यह किसी नवीन तीर्थकी स्थापना करेगा ? शुक- हां, यह चिटक पर्वत पर बदरी नामक तीर्थकी स्थापना करेगा और जैन धर्मकी विजय पताका फहायेगा । ४२८ शुक और शुकीकी यह बातें सुनकर कनक तम्बूसे बाहर निकाल आया और कौन बातचीत कर रहा है, यह जाननेके लिये वह इधर उधर देखने लगा। जब उसे शुक और शुकीको छोड़, वहां और कोई भी न दिखायी दिया, तब उसे विश्वास हो गया कि निःसन्देह यही दोनों बातचीत कर रहे थे। साथ ही शुक बड़ा ज्ञानी है यह सोचकर वह पुनः उन दोनोंकी बातचीत सुनने लगा । इस बार उन दोनोंमें फिर इस प्रकार बातचीत होने लगी । शुको हे स्वामिन्! यह वणिक जिस विम्बको प्रतिष्ठित करेगा, वह शैलमय, रत्नमय, सुवर्णमय या काष्टमय - कैसा होगा ? शुक- प्रिये ! यह वणिक स्पर्श-पाषाणमय जिनबिम्बकी स्थापना करेगा और उसके कारण संसार में इसकी बड़ी ख्याति होगी । जिस समय शुक और शुकीमें इस तरहकी बातचीत हो रही थी, उसी समय कनकके दोनों पुत्र भी वहां आ पहुंचे । शुकयुगलको देखकर दुर्विनीतने कहा, “इस शुकका या तो शिकार करना चाहिये या पकड़ कर पींजड़े में बन्द कर देना चाहिये ।”
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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