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________________ - - - F t.tt.stottototerttot-tot.toto **** ************ ************** **it yetwtotrt.tta * ** सनत्कुमार चक्रीकी कथा । ** ** wetatutettet ** * ********ke-de.****** ************ m msmosimimom इस भरतक्षेत्रके कुरुदेशमें महर्द्धिपूर्ण हस्तिनागपुर नामक. एक नगर है। वहां अतुल पराक्रमी वीरसेन नामक राजा राज्य करता था। उले सहदेशी नामक एक पटरानी थी। वह परम पवित्र और शालवता थी। उसके उदरसे बौदह स्वप्न सूचित सनत्कुमार नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। समकुमारके महेन्द्रसेन नामक एक बाल मित्र था। महेन्द्रसेनको नालाका नाम कालिन्दी और पिनाका नाम सूरराज था। इन दोनों की शिक्षा दीक्षा एक साथ हो होती थी। कुछ ही दिनोंमें सनत्कुमार समस्त कलाओंमें पारङ्गत हो गया। और अपना अधिकांश लमय विद्या-विनोदमें व्यतीत करने लगा। क्रमशः राजकुमारने युवावस्थामें पदार्पण किया और वह अब आमोद-प्रमोद तथा क्रीड़ाओंमें भी भाग लेने लगा। एक बार वसन्त ऋतु आनेपर वह अपने मित्र और नगरजनोंके साथ वनमें गया और वहां नाना प्रकारको वसन्तकोड़ा करने लगा। जिस समय वह नजदीकके एक सरोघरमें जलक्रीड़ा कर रहा था, उसी
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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