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________________ * पार्श्वनाथ चरित्र हैं, उन्हें धन्य है । ऐसे लोगों को मोक्ष प्राप्त करते देर नहीं लगती। जो लोग राजर्षि नमिकी भांति राज्य त्याग कर चारित्र ग्रहण करते हैं और निरतिचार पूर्वक पालते हैं, उन्हें भी धन्य है । ऐसे भव्यजीव अवश्य ही मोक्षको प्राप्त करते हैं । अब हमलोग तप धर्मपर विचार करेंगे । अनन्त कालका संचित और निकाचित कर्मरूपी काष्ट भो तपरूपी अग्नि से भस्म हो जाता है। कहा भी है कि जिस प्रकार जंगलको जलानेके लिये दावाग्निके सिवा और कोई समर्थ नहीं है। दावाग्निको शान्त करनेके लिये मेघके सिवा और कोई समर्थ नहीं है, मेघको छिन्नभिन्न करने के लिये जिस प्रकार पवनके सिवा और कोई समर्थ नहीं है । उसी प्रकार कर्म समूहका नाश करनेके लिये तपके सिवा और कोई समर्थ नहीं है। इससे समस्त विघ्न दूर होते हैं, देवता आकर सेवा करते हैं; काम शान्त होता है, इन्द्रियां सन्मार्ग में प्रेरित होती हैं, लधियें प्रकट होती हैं, कर्मसमूहका नाश होता है और स्वर्ण एवम् मोक्षको प्राप्ति होती है । इसलिये तपके समान प्रशंस 1 वस्तु और नहीं है। हे महानुभाव ! इन्हीं कारणोंसे तपधर्म की आराधना करना कहा है। विस्तृत राज्यका त्याग कर चारित्र अंगीकार करनेवाले सनत्कुमार चक्रोको भी तपके प्रभावसे अनेक लब्धियों की प्राप्ति हुई थी । वह कथा इस प्रकार है : ၅
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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