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पार्श्वनाथ चरित्रतैयार हो जाइये। उसके लिये यही उपयुक्त अवसर है। आपके भाईने आपके साथ जो दुर्व्यवहार किया है, उसका कोई खयाल न कीजिये । यह सब अपने कर्मका ही दोष है । इसमें और किसीका दोष नहीं हैं। किसीने कहा भी है कि इस जन्ममें या दूसरे जन्ममें जो जिस कर्मको करता है, वह उसे अवश्य हो भोगना पड़ता है। दूसरे तो केवल निमित्त मात्र हैं। इसलिये आप उसका कोई ख़याल न कर केवल धर्मकी साधना कोजिये। आपने अपने जीवनमें यदि कोई दुष्कर्म किया हो तो उसकी निन्दा कीजिये। मित्र, शत्रु या स्वजन, परजनका कोई अपराध किया हो, तो उनसे क्षमा प्रार्थना कीजिये और सबसे मैत्रीभाव बढ़ाइये। जिन्होंने आपको दुःखमें डाला हो, उनसे भी क्षमा प्रार्थना कीजिये । जोवन, धन, यौवन, रूप और प्रिय समागम—यह सब समुद्रके तरंगोंकी भाँति चंचल हैं। व्याधि, जन्म, जरा और मृत्युसे ग्रसित प्राणियोंके लिये जिन धर्मके अतिरिक्त और कोई अवलम्बन नहीं है। आप किसीका भी प्रतिबन्ध न कीजिये । प्राणो अकेला ही उत्पन्न होता है, अकेला ही मरता है और अकेला हो सुख दुःखका अनुभव करता है। शरीर, धन, धान्य और परिवार यह सभी अनित्य हैं। रुधिर, मांस, अस्थि, अन्त्रावली, विष्ठा और मूत्रसे परिपूर्ण इस शरीरपर आसक्त न होइयेगा। लालन-पालन करने पर भी यह शरीर अपना कभी नहीं होता। धीर या भीरु सबको एक न एक दिन मरना ही है। मृत्युसे केवल बालक और सुकृतवर्जित मनुष्य ही डरते हैं। पण्डितगण तो मृत्युको प्रियतम