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________________ * षष्ठ सर्म. सुनते ही युगबाहुके अनुचर वहां दौड़ आये। वहां जो उन्होंने दृश्य देखा उससे उनके आश्चर्यका वारापार न रहा। युगबाहु लहसे लथपथ अवस्थामें जीवनको अन्तिम घड़ियां व्यतीत कर रहा था और उसके पासही मणिरथकी रक्त रंजित तलवार पड़ी हुई थी। इस समय मणिरथने सब लोगोंको शान्त करते हुए कहा कि-"मेरे हाथसे अचानक तलवार छूटकर इसे लग गयी! अब मैं क्या करू और संसारको कौन मुंह दिखाऊ? इसी तरह की बातें बना कर वह लोगोंको दिखानेके लिये गला फाड़-फाड़ कर रोने लगा। कुछ समय तक यह अभिनय करनेके बाद वह युगबाहुको नगरमें उठवा ले गया। उधर युगबाहुके पुत्र चन्द्रयशाने जब यह समाचार सुना, तो वह हाहाकार करता हुआ वहां दौड़ आया और पिताकी यह अवस्था देखकर वह क्षण भरके लिये किंकर्तव्यविमूढ़ बन गया ; किन्तु शीघ्र ही उसने अपने आपको सम्हाला और युगबाहुका उपचार करभेके लिये नगरके सुचतुर वैद्योंको बुला लाया। उसी समय वैद्य लोग यत्नपूर्वक युगबाहुकी चिकित्सा करने लगे, किन्तु अब उसके जीवनकी कोई आशा न थी : उसके जख्मसे बहत सा रक्त निकल जानेके कारण वह मृत प्राय हो रहा था। उसकी बोली बन्द हो गयी थो, शरीर स्तब्ध हो गया था और आंखें झेप गयी थीं । पतिकी यह अवस्था देखते ही मदनरेखा समझ गयी कि अब इनका अन्तिम समय आ पहुंचा है। अतएव वह उसके कानके पास आकर कोमल स्वरसे कहने लगी-“हे प्राणनाथ ! अब आप स्वहितकी साधनाके लिये
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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