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________________ ~~~ * षष्ठ सर्ग * चन्द्र, दूसरेका नाम भानु, तीसरेका नाम भीम और थोथेका नाम कृष्ण था । यह चारों सदा एक दूसरेका हित चाहते और परस्पर हास्यविनोद किया करते थे। दूध और पानीकी तरह सदा वे एक दूसरेसे मिले रहते थे। किसीने :कहा है, कि—देना और लेना, गुप्त बात कहना और सुनना, भोजन करना और करानायह प्रतिके छः लक्षण बतलाये हैं।" यह सभी बातें इन चारों मित्रोंमें पायो जाती थीं। इससे वे चारो जन बड़े ही आनन्द पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते थे। एक समय चन्द्र सोचने लगा,कि हम लोग अपनेको भाग्यवान् भले ही समझे, पर वास्तवमें हम वैसे नहीं हैं, क्योंकि बाल्यावस्थामें तो माताका दूध और पिताका धन उपभोग करना ठीक हैं, किन्तु युवावस्थामें जो अपने हाथोंसे पैदा कर खाये-खर्चे वही वास्तवमें भाग्यवान है किन्तु जो मूल पुजीको उड़ाता है, वह नोच कहलाता है। इसलिये धन कमानेके लिये कोई उपाय करना चाहिये । बिना आमदनीके खर्च करना ठीक नहीं। यह सोचते हुए शीघ्र ही चन्द्रने अपना यह विचार अपने तीन मित्रोंको कह सुनाया। उसको बात सुनकर सबोंने निर्णय किया किहम लोगोंको नौकाओं द्वारा समुद्र यात्रा कर व्यापार करना चाहिये।” इसके बाद उन सबोंने अपने-अपने पितासे इस सम्बन्धमें जिक्र किया ; किन्तु सबोंके पिताओंने प्रायः यही उत्तर दिया कि घरमें काफी धन है, फिर तुम्हें इस तरह विदेश-गमन करनेको क्या आवश्यता है ? अभी तुम लोग युवक हो, दूसरे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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