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________________ * षष्ठ सगै* उसे ख़याल हो आया कि चोरको कदापि अछुता न छोड़ना चाहिये अतएव नियमानुसार उसे शुलीपर चढ़ानेकी आज्ञा दे दी। इस समय राजाकी बायीं ओर प्रियकरा पटरानी बैठी हुई थी। उसने वसन्तकको दीन शरण रहित देखकर राजासे प्रार्थना की किः"हे नाथ! केबल आज एक दिनके लिये इस चोरको मेरे हवाले कर दीजिये। मैं आज इसके मनोरथ पुर्णकर कल फिर इसे आपको सौंप दुगी।” रानीकी यह प्रार्थना राजा अस्वीकार न कर सका। उसने वसन्तकको रानीके साथ जानेको आज्ञा दे दी। रानी उसे बन्धन मुक्तकर तुरत अपने महलमें ले आयी। वहां उसकी आज्ञासे दास दासियोंने तैल मर्दनकर स्वर्ण कुम्भोंमें भरे हुए स्वच्छ सुगन्धित और उष्ण जलसे उसको स्नान कराया। इसके बाद सुकोमल और सूक्ष्म बस्त्रसे उसका शरीर पौंछकर उसे दिब्य वस्त्र पहनाये गये । तदन्ततर कृष्णागुरू धूपके धुपसे ऊसके केश सुवासितकर चन्दनसे उसका अंग विलेपित किया गया। इसके बाद दोनों बाहुओं में बाजूवन्ध, अंगुलियों में अंगूठी, कानमें कुण्डल, मस्तकपर मुकुट, कंठमें हार प्रभृति आभूषण पहनाये गये । इसके बाद एक उत्तम आसनपर बैठाकर रानीने उसे नाना प्रकारके पदार्थ खिलाये । तदनन्तर कर्पूर मिश्रित ताम्बुल खिलाकर रानीन उसे पलंगपर बैठाया और कथा-कहांनी तथा काव्य विनोद द्वारा उसका मनोरंजन किया। क्रमशः जब शाम हुई तब रानीकी आज्ञासे सेवकों ने उसे एक अच्छे घोड़े पर सवार कराया और उसके सिरपर छत्र धारणकर सैकड़ों सुभट तथा विविध वाजि
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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