SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * पञ्चम सर्ग * वर्षा की। इसके बाद जिनेश्वरके अंगुष्टमें अमृतसींचन कर, उन्हें प्रणाम कर समस्त सुरेन्द्र और सुरासुर नन्दी द्वीप पहुँचे। वहां उन्होंने शाश्वत जिनेश्वरोंको बन्दन कर अट्ठाई महोत्सव किया और इसके बाद वे सब अपने-अपने स्थानको चले गये। ___ सुबह वामादेवकी निद्रा खुलनेपर उन्होंने जब दिव्य अंगवाले और वस्त्राभूषणोंसे सजे हुए विकसित बदन कमलवाले पुत्रको अपने पासमें सोता हुआ देखा, तब उन्हें अत्यन्त आनन्द हुआ। शीघ्रही कुमारके जन्म और दिक्कुमारियोंके आगमन आदिका समाचार राजाको पहुँचाया गया। यह शुभ संवाद सुनकर अश्वसेन राजाने भी जन्मोत्सव मनानेका आयोजन किया। उसने सर्वप्रथम कारावासके समस्त कैदियोंको मुक्त कर दिया और गरीबोंको अन्न-वस्त्र दिया। इसके बाद नाना प्रकारसे जन्मोत्सव मनाया। उस समय अंगनाओंके नृत्य और दिव्य-गानसे, तथा विविध वाद्योंके मनोहर नादसे, एवं जयजयकारके घोषसे तथा शंख ध्वनिसे सारा नगर आन्दोलित हो उठा । दान, सम्मान और बढ़तो हुई लक्ष्मीके कारण राजभवन विशाल होनेपर भी उस समय छोटासा मालूम होने लगा। इसके बाद सूतक बीत जाने पर राजाने कुलाचारके अनुसार समस्त खजनोंको निमन्त्रित कर उन्हें भोजन और वस्त्राभूषणों द्वारा सम्मानित किया। पश्चात् उसने समस्त स्वजनोंसे निवेदन किया कि हे बन्धुओ! जिस समय यह बालक गर्भमें था उस समय इसको माताने अन्धकारमें भी पाससे जाते हुए साँपको देखा था, अतएव
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy