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________________ २६४ * पार्श्वनाथ चरित्र *# ( ६६ ) धन त्रयोदशीको धन-पूजादि करना ( ७० ) शिवरात्रिके दिन उपवास और जगरणादि करना (७१) नवरात्रि में यात्रादि करना ( ७२ ) अनन्त चतुर्दशीको अनन्त बांधना (७३) अमावस्याको दामाद और भानजेको भोजन कराना (७४) सोमवारी अमावस्या और नवोदक अमावास्याको नदी, तालाब आदिमें विशेष रूपसे स्नान करना (७५) दीवालीके दिन पितृयोंके निमित्त दीये जलाना (७६) कार्तिक और वैशाखकी पूर्णिमाको स्नान करना (७७) होलीकी प्रदक्षिणा, नमस्कार, और उस दिन भोजनादि करना (७८) श्रावणकी पूर्णिमाको श्रावणी कर्म करना (७६) दौवा - साको जागरण आदि करना (८०) उत्तरायणकी रचना करना । इस प्रकार देशप्रसिद्ध लौकिक देवगत मिथ्यात्व अनेक प्रकारका होता है। इनके अतिरिक्त लौकिक गुरु, ब्राह्मण, तापस, योगी आदिको नमस्कार करना, तापसके पास जाकर 'ॐ शिवाय' आदि बोलना, मूल अश्लेषादिक नक्षत्र में बालकका जन्म होनेपर ब्राह्मणके कथनानुसार क्रिया करना, ब्राह्मणसे कथायें सुनना, ब्राह्मणोंको गाय, तिल, तैल आदिका दान देना, उन्हें प्रसन्न रखनेके लिये उनके घर जाना प्रभृति लौकिक गुरुगत मिथ्यात्व कहलाता है । परतीर्थियों द्वारा संग्रहित जिनबिम्बादि की अर्चना करना, और श्रीशान्तिनाथ पार्श्वनाथादि प्रतिमाओंकी एहिक सुखके निमित्त यात्रा और मानतादि करना लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व कहलाता हैं । लोकोत्तर लिंगी पासत्थादिकको गुरुवुद्धिसे बन्दना करना और गुरु स्थानादिकी ऐहिक फल निमित्त
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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